राजकमल चौधरी हिंदी व मैथिली के ऐसे अद्भुत रचनाकार थे, जिनका जिक्र किए बिना आधुनिक हिंदी साहित्य की बात हो ही नहीं सकती. चाहे कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, आलोचना हो या डायरी, उन्होंने जो भी लिखा उसमें सामाजिक, पारिवारिक, राजनीतिक पाखंड की धज्जियां उड़ा दी. मानव मात्र की धड़कन उनके लेखन का चरम था, जिसमें विद्रोह भी था तो स्वीकार्यता भी. वह अकविता के प्रमुख हस्ताक्षर तो थे ही. राजकमल चौधरी के लिए कविता अपने विकट समय में जीवन और उसकी जमीन के लिए अभिव्यक्ति का हथियार थी. पर उखाड़- पछाड़ के इस कवि ने केवल विद्रोही भाव ही नहीं लिखा. जैसे धूमिल ने राजकमल चौधरी के लिए कविता लिखी थी, वैसे ही राजकमल चौधरी ने भी 'अमृता शेरगिल के लिए' एक कविता लिखी थी.
राजकमल चौधरी की पुण्यतिथि पर यह कविता पढ़िएः
वक़्त के ताबूत में सिमट नहीं पाते हैं
गर्म उसके सफ़ेद हाथ.
लाल फूलों से
ढका पड़ा रहता है
सिकुड़ा हुआ
उसका पूरा जिस्म एक अन्धेरे कोने में
ख़ासकर बुझी हुई आंखों के पीले
तालाब.
ख़ासकर टूटे हुए स्तनों के
नीले स्तूप.
लेकिन सफ़ेद उसके
गर्म हाथ ताबूत से बाहर थरथराते रहते
हैं.
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