नई दिल्लीः राजकमल प्रकाशन ने 70 साल होने के अवसर पर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एक कार्यक्रम किया. 'भविष्य के स्वर' नामक इस कार्यक्रम की शुरुआत में राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा कि पिछले साल स्थापना दिवस पर राजकमल प्रकाशन ने जो बातें की, जो वादे किये गए थे उन्हें पूरा किया है. उर्दू और मैथिली में किताबों का प्रकाशन शुरू हो चुका है. जल्द ही इसमें बृज एवं अवधी की किताबें भी शामिल हो जाएंगीं. उन्होंने कहा कि 70 साल पूरा होने के बाद हम पुस्तक लेखक और पाठकों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का गहराई से अनुभव कर रहे हैं. राजकमल प्रकाशन समूह के सम्पादकीय निदेशक सत्यानंद निरूपम का कहना था कि, 'राजकमल की 70 वर्षों की यह यात्रा, एक प्रकाशक के साथ लेखकों और पाठकों के भरोसे की सहयात्रा का इतिहास है. आने वाले वर्ष में हम हिंदी पट्टी की मातृभाषाओं के साहित्य को भी उचित स्थान, उचित सम्मान देंगे. उनको साथ लिए बिना हिंदी बहुत दूर नहीं जा सकेगी. इस दौरान राजकमल के दो सहकर्मियों सतीश कुमार तथा अशोक त्यागी को शॉल एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया गया.
इसके बाद 'भविष्य के स्वर' नामक विचार गोष्ठी में सात वक्ताओं अनुज लुगुन, आरजे सायमा, अनिल आहूजा, अंकिता आंनद, गौरव सोलंकी, विनीत कुमार और अनिल यादव ने अलग-अलग विषय पर अपनी बात रखी. अनिल यादव ने कहा कि हिंदी के टूटे सपने को पूरा करने के लिये भगीरथी उद्यम चाहिए. अनुज लुगुन ने कहा कि सामाजिक धरातल पर जो आदिवासी अलग दिखता है, रचनात्मकता के स्तर पर वह एक समान है. रेडियो की चर्चित उद्घोषिका सायमा ने कहा, हिंदी उनकी पहली मोहब्बत है, उर्दू इश्क़ की भाषा है. अंकिता ने अपनी बात रखते हुए औरतों को लेकर कुछ ऐसे सवाल किए, जिसने सभी को झकझोर दिया. गौरव सोलंकी ने चेताया कि रास्ता पूछने के लिए जिस तरह इंसानों की जरूरत ख़त्म हो रही है, उसी तरह कहानियां लिखने के लिए लेखकों की जरूरत ख़त्म न हो जाए. अनिल आहुजा का कहना था कि प्रकाशन जगत का जो नया दौर है वह तकनीकी रूप से शानदार है. भारतीय प्रकाशन जगत को आने वाले समय में विकसित होना है, तो समय के साथ प्रकाशन जगत के नए आयामों को भी विकसित करना होगा.