नई दिल्ली: "शहर का किनारा. उसे छोड़ते ही भारतीय देहात का महासागर शुरू हो जाता था. वहीं एक ट्रक खड़ा था." श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास राग दरबारी की ये शुरुआती लाइनें हैं. राग दरबारी के प्रकाशन के पचास साल पूरे होने पर राजकमल प्रकाशन ने कृति उत्सव का आयोजन सत्य साईं सभागार में किया. इस अवसर पर जिलियन राइट, पुरुषोत्तम अग्रवाल, पुष्पेश पंत, ज्यां द्रेज़ और देवी प्रसाद त्रिपाठी ने विशेष व्याख्यान दिया। कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल, दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, ओम थानवी, नंदिनी सुंदर, अजीत अंजुम, सुमित अवस्थी, अनुषा रिज़वी, नगमा सहर, प्रभात शुंगलू, अशोक वाजपेयी, रंजीत कपूर, प्रभात रंजन, हेमन्त शर्मा सहित साहित्य, पत्रकारिता से जुड़े तमाम लोग उपस्थित थे.
राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कहा कि हिंदी साहित्य में राग दरबारी का विशेष स्थान है और रहेगा. पुष्पेश पंत ने राग दरबारी की प्रासंगिकता पर बात रखते हुए कहा कि "आज का हिंदुस्तान शिवपालगंज नहीं हो सकता है, यह बाबरी मस्ज़िद के विध्वंस होने के पहले का भारत है, यह आपातकाल के पहले का भारत है और हरितक्रांति के पहले का भारत है." पुरुषोत्तम अग्रवाल का कहना था, “मैंने जब पहली बार राग दरबारी उपन्यास पढ़ा तब मेरी उम्र चौदह बरस थी. उसको मैं पचास बार पढ़ चुका हूं और पचास बार और पढ़ूंगा.”
विख्यात अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ ने कहा कि "पुराने दिनों में दलित-शोषित-महिलाओं पर नियंत्रण पिटाई द्वारा होता था. अब पिटाई नहीं कर सकते तो सारी योजनाओं पर कब्ज़ा करके उनपर नियंत्रण कर रहे हैं. रागदरबारी इसी नियंत्रण की कहानी है." राग दरबारी की अंग्रेजी अनुवादक जिलियन राइट ने कहा कि "राग दरबारी जैसी किताब तो अंग्रेजी में न कोई था न है. ले"
देवी प्रसाद त्रिपाठी ने राग दरबारी के 50वें प्रकाशन वर्ष में छपे नए आवरण वाले सजिल्द और पेपरबैक संस्करण का लोकार्पण किया और कहा कि "रागदरबारी उपन्यास में पहले पन्ने से ही मुहावरों का प्रयोग किया गया है. श्रीलाल शुक्ल अपने मुहावरे अवधी और अंग्रेजी से लेते थे और उनके मुहावरे काफी धारदार होते थे." राजकमल के संपादकीय निदेशक सत्यानन्द निरुपम ने राग दरबारी के विशेष संग्रहणीय संस्करण के प्रकाशित किए जाने की घोषणा की. सीमित संख्या में छपने जा रहे इस डिलक्स एडिशन की झलक चित्रकार विक्रम नायक की उपस्थिति में दिखलाई गई.
व्याख्यान के बाद दास्तान-ए-राग दरबारी पेश किया गया. याद रहे कि श्रीलाल शुक्ल ने 1964 में राग दरबारी उपन्यास को लिखना शुरू किया था और 1967 में यह उपन्यास पूरा हुआ. इसका प्रकाशन 1968 में हुआ था और 1970 में इसे साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला. 1986 में दूरदर्शन पर इस उपन्यास पर आधारित एक धारावाहिक भी प्रसारित हुआ था. प्रकाशक का दावा है कि इस उपन्यास की 5 लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं. ( प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित)