चर्चित महिला पत्रकार रमी छाबड़ा ने अपने करियर की शुरुआत 1950 के दशक की थी. 18 साल की उम्र में एक प्रसिद्ध बीबीसी एंकर का साक्षात्कार कर मीडिया में छा जाने वाली रमी देश में स्वतंत्रताकाल के दूसरे युवाओं की तरह ही- उत्साही, युवा, आदर्शवादी और कुछ करने की ललक लिए हुए थी, जो उनके लेखन में दिखाई भी देता है. तब पत्रकारिता के पेशे में महिलाओं की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती थी. कम उम्र में शादी और बच्चों की जिम्मेदारी के चलते रमी ने स्वतंत्र पत्रकारिता की फैशन/ इकेबाना नामक कॉलम लिखा. 1965 में टीवी पर प्रसारण के साथ ही वह साप्ताहिक कार्यक्रम करने लगीं. बाद में स्टेट्समैन अखबार में 'वोमेन अबाउट टाउन' लिखा और धीरे-धीरे  देश में महिला अधिकारों की प्रवक्ता बन गईं. उन्हें 1975 में उन्हें संयुक्त राष्ट्रसंघ के महिलाओं के सम्मेलन में मैक्सिको बुलाया गया. इस मौके पर वह युद्ध प्रभावित वियतनाम भी गईं. ऐसा करने वाली वह पहली पत्रकार थीं. मार्च 1977 से उन्होंने 'अ फेमिनिस्ट व्यूप्वाइंट' कॉलम लिखना शुरू किया, जिसमें उन्होंने महिला अधिकारों, सुरक्षा और स्थितियों पर लगातार लिखा. पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र के उनके अनुभवों पर अंगरेजी में नेशनल बुक ट्रस्ट की ओर से उनकी एक किताब 'ब्रेकिंग ग्राउंड- जर्नी इनटू द मीडिया एंड आउट…नाम से छपी.

रमी की यही किताब अब दीपाली ब्राह्मी द्वारा हिंदी में अनूदित होकर राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा ही 'अनगढ़ रास्ते- मीडिया क्षेत्र में आगमन….एवं अलविदा' नाम से छप कर आई है, जिसका विमोचन 7 अगस्त को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में लेखिका रमी छाबड़ा और अनुवादक दीपाली ब्राह्मी की मौजूदगी में डॉ. कपिला वात्स्यायन द्वारा किया जाएगा. इस मौके पर एक परिचर्चा भी आयोजित है, जिसका विषय है 'ये आज क्यों ऐसे, कुछ कर सकें तो कैसे?' परिचर्चा में पत्रकारिता और समाजसेवा के क्षेत्र के चर्चित चेहरे आलोक मेहता, नीरजा चौधरी, मधु किश्वर, अनिता और कल्यान पॉल भाग लेंगे.