भोपालः भारत भवन में भारतीय कविता केंद्र वागर्थ द्वारा युवा रचनाकारों पर केंद्रित तीन दिवसीय समारोह 'युवा-7' काफी रचनात्मक और उम्दा रचनाओं का साक्षी बना. यहां प्रस्तुत हुई कहानियां और कविता पाठ लंबे समय तक उपस्थित श्रोताओं और रचनाकारों के जेहन में रहेंगी. इस दौरान वरिष्ठ रचनाकार डॉ. निर्मला जैन द्वारा 'हमारा समय और कविता का अंर्तद्वंद' विषय पर दिया गया वक्तव्य काफी महत्त्वपूर्ण रहा. उन्होंने कहा कि समय वैसे तो अपने आप में एक अमूर्त अवधारणा है, लेकिन इस संदर्भ में शास्वत अमूर्त अवधारणा नहीं है, कि वह देशकाल, वंश, सामाजिक स्थिति को दर्शाता है, और यह सामाजिक स्थिति हमारा वर्तमान है. सवाल यह है कि यह समय कविता के लिए कोई अंर्तद्वंद पैदा कर रहा है या नहीं. उन्होंने कहा कि बुजुर्गों ने चार पुरुषार्थों की चर्चा की थी. धर्म, अर्थ, काम मोक्ष, इन पुरुषार्थों में मोक्ष को भूल जाइए. शायद उसकी चर्चा और उल्लेख आखिरी में है. सचमुच यदि इसकी कोई वास्तविकता होती तो शायद उसका पहले उल्लेख किया जाता. मोक्ष काल्पनिक स्थिति है. हम विश्वास करते हैं और विश्वास करना चाहते हैं कि मनुष्य को निरंतर प्रेरित करने के लिए सपना दिखाओ. उसको बताओ कि अच्छा काम करोंगे तो मोक्ष मिलेगा. कोई नहीं बता सकता है कि मोक्ष क्या है? यह सिर्फ एक अवधारणा है और कल्पित स्थिति है.
इस कार्यक्रम में अनुशक्ति सिंह, तसनीम खान का कहानी पाठ और दिव्या पांडे, रश्मि भारद्वाज, सुजाता आदि का कविता पाठ हुआ. युवा कवि अच्युतानंद मिश्र ने 'बड़े कवि से मिलना हुआ, वे सफलता की कई सीढ़ियां चढ़ चुके थे..' कविता के अलावा 'बच्चे' शीर्षक से 'सड़क पर चलते हुए एक बच्चे ने घुमाकर एक पत्थर फेंक दिया…', और 'किसान' शीर्षक से 'उसके हाथ में अब कुदाल नहीं रही, उसके बीज सड़ चुके थे…' कविता पढ़ी. अरुणाभ सौरभ ने 'राग यमन' शीर्षक के साथ 'रात के पेट में धंस चुकी चांदनी…' और 'लोहिया' पर केंद्रित 'धरती माता, भारत माता…, दिन ढलने से पहले…' और अधकही कविता सुनाईं. अदनान कफील दरवेश ने 'तुम्हारी एक-एक चीज को खिलौना बना देंगे…' और अन्य कविताएं सुनाईं, तो रक्षा दुबे ने सवामनी शीर्षक से 'गांव के बाहर कच्चे से टीले पर बने…' कविता सुनाई. यह कविता गांव में सवामन प्रसाद चढ़ाने की परंपरा पर केंद्रित थी. इसके बाद 'जड़ें' शीर्षक वाली 'वे जो चले जाते हैं अपनों को छोड़कर जमीन के भीतर गहरे अंधेरे और गीलेपन में…' कविता प्रस्तुत की. उन्होंने गृहस्थी, दफ्तर में औरतें और बिकने को तैयार आदि कविताएं प्रस्तुत कीं. कवि उपांशु, अंचित, सांत्वना श्रीकांत, नवीन रांगियाल, विजया सिंह और रंजना मिश्र ने भी अपनी कविताएं सुनाईं, तो हमारा समय और कविता का अंतर्द्वंद विषय पर अभिषेक शर्मा, पंकज चौधरी, प्रमोद कुमार तिवारी, आनंद सिंह और अरुण देव आदि ने भी अपने विचार रखे.