नई दिल्ली: मन्नू भंडारी एक ऐसी रचनाकार थीं जिन्होंने मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया. उन्होंने जो महसूस किया वो लिखा. साधारण की महिमा का जो एक अभियान आज की आधुनिकता में चला है, उसकी वह मुकाम थीं. वह एक बड़ी लेखिका थीं लेकिन उनमें इसको लेकर कभी अभिमान नहीं रहा. उन्होंने 'आपका बंटी' जैसा उपन्यास तब लिखा जब लोग संबंधों के बारे में खुलकर कहने से संकोच करते थे. उनकी कृतियां हमेशा पढ़ी जाएंगी. हमें फक्र है कि हम मन्नू भंडारी युग में जिये. ये बातें कथाकार मन्नू भंडारी की स्मृति में आयोजित सभा में उनके प्रशंसकों ने कहीं. साहित्य अकादमी के सभागार में मन्नू भंडारी की स्मृति सभा का आयोजन राधाकृष्ण प्रकाशन और हंस पत्रिका परिवार की और से किया गया. कथाकार मृदुला गर्ग ने कहा, “मन्नू जी उन बिरले इनसानों में थीं जिनमें अहंकार बिल्कुल नहीं था. एक बार उन्होंने कहा था कि मुझे जितना प्यार सम्मान मिला उतना मैंने लिखा नहीं. यह उनकी विनम्रता थी. उन्होंने किसी विचारधारा या विमर्श के दबाव में नहीं लिखा, स्वेच्छा से जो चाहा वही लिखा.” मृणाल पांडे ने कहा, मन्नू जी के लेखन और जीवन में सत्यनिष्ठता की कीमत चुकाई, पर इसका कोई हल्ला नहीं मचाया. वह ईमानदार थीं. मैं उनकी ईमानदारी की कायल थी. वह हमारी सदय अग्रजा और स्नेही मित्र थीं. मूल्यों से समझौता नहीं करना उनका स्वभाव था.” पांडे ने कहा, मेरी मां शिवानी मन्नू जी की बहुत बड़ी फैन थीं. हमें फक्र है़ कि हम मन्नू भंडारी युग में जिये. वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी ने कहा, “मेरी नजरों में मन्नू भंडारी की एक सौम्य छवि बनी हुई है. साधारण की महिमा का जो एक अभियान हमारी आधुनिकता में चला है, उसकी वह मुकाम थीं. उनका उत्तर जीवन शुरू हो गय़ा है और यह जीवन उनके भौतिक जीवन से भी लंबा होगा यही कामना करते हैं.”
रंगकर्मी अमाल अल्लाना ने एक संदेश में मन्नू जी के उपन्यास महाभोज के नाट्य रूप की प्रस्तुति की यादें साझा करते हुए कहा, उस उपन्यास के नाट्य रूपांतर के समय हर बैठक में वे आईं और मुझे पूरा सहयोग दिया. एक युवा निर्देशक के प्रति उनकी यह उदारता मुझे हमेशा याद रही. हमेशा याद रहेगी. कथाकार गीतांजलि श्री ने कहा, मन्नू जी का लेखन फेमिनिज्म के संदर्भ में हमारी पीढ़ी को एक अलग दृष्टि देने वाला साबित हुआ. उनकी दृढ़ता और स्पष्टता ने हमें काफी प्रेरणा दी. ममता कालिया ने कहा, “एक लेखक का सबसे बड़ा जीवन यह होता है कि पाठक उसके लेखन को पढ़ते रहें. मन्नू जी ऐसी ही लेखक थीं. वे सहज सरल और क्षमाशील थीं. बहुत ही सहज औऱ उदार इंसान थी. उन्हें अपने आप पर, बड़ी लेखिका होने पर कभी अभिमान नही था. मन्नू जी ने आपका बंटी जैसा उपन्यास तब लिखा जब लोग संबंधों को गोपनीय रखते थे, उन्होंने महाभोज तब लिखा जब हिंदी में दलित लेखन का चलन नहीं हुआ था.” राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा कि हमें अपने राधाकृष्ण प्रकाशन से मन्नू भंडारी का समस्त लेखन प्रकाशित करने का सौभाग्य मिला… मन्नू जी स्नेह भी बहुत करती थीं, चिंता भी बहुत करती थीं, और नाराज भी बहुत होती थीं. सब ऐसे ही सहज जैसे एक मां करती है. मुझे लगता है कि मन्नू जी को अपने लेखकीय आत्मविश्वास और सहजता के लिए याद किया जाता रहेगा. रंगकर्मी देवेंद्रराज अंकुर ने बताया कि मन्नू भंडारी के उपन्यास महाभोज को मैंने ही 1981 में पहली बार मंचित किया था. यह एक महत्त्वपूर्ण रचना थी खासकर राजनीति को लेकर. तबसे 40 वर्षो में हिन्दी रंगमंच औऱ देश की कई भाषाओं में इसका मंचन हुआ. स्मृति सभा में मन्नू भंडारी पर केंद्रित एक डॉक्यूमेंट्री के अंश भी दिखाए गए. इसके बाद शास्त्रीय गायिका विद्या शाह ने कबीर,सूर आदि संत कवियों के पदों का गायन किया.