ये दुनिया दर्द की मारी बहुत है
यहां रहने में दुश्वारी बहुत है…
अमन चांदपुरी की गज़ल की ही यह पंक्तियां हैं. विश्वास ही नहीं होता कि यह किसी ऐसे युवा कवि ने लिखीं हैं जिसने जिंदगी के ढाई दशक भी पूरे न किए हों. भला यह भी कोई जाने की उम्र होती है. 25 नवम्बर 1997 को पैदा हुए और 10 अक्टूबर 2019 को चल बसे. अजमेर की प्रेरणा साइवान ने कभी अमन की गज़लों और रचनाओं पर टिप्पणी करते हुए लिखा था, छोटी-सी उम्र में जब बच्चे खिलौनों से खेलते हैं, तब अमन बुजुर्गों की गीली आंखों में अनुभव का खजाना ढूढ़ लेते हैं, और खुद से कहते हैं –
बुज़ुर्ग की आँखें
अनुभव का सागर
अमन,
भर लो गागर
समाज के प्रति जागरुकता, कन्या भ्रूण-हत्या, घरेलू हिंसा, महिला उत्पीड़न, सामाजिक रुढ़ियां, अंधविश्वास, भेदभाव पर इतनी कम उम्र में बहुत कुछ रच जाने वाले अमन को सीमित शब्दों में बड़ी बात कहने में महारथ हासिल थी. प्रेम पर लिखने की तो खैर उनकी उम्र थी ही. मुक्तक, गीत, गज़ल, दोहे, क्षणिकाएं, काव्य की हर विधा में काफी कुछ लिखा अमन ने, पर यह अचरज की बात है कि इतने प्रचुर लेखन के बीच जीवन के इस युवा पड़ाव की पहली सीढ़ी पर भी वह मृत्यु से संवाद करने लगे थे. एक क्षणिका में उन्होंने कहा था
आज नहीं
कल नहीं
परसो भी नहीं
तुम मुझसे मिलने
आना ही नहीं….काश ऐसा हो पाता. अमन को नमन.