वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी की योगी आदित्यनाथ पर लिखी बहुप्रतीक्षित किताब ‘यदा यदा हि योगी’ का विमोचन अभी हाल ही में हुआ| किताब का प्रकाशन ‘वेस्टलैंड’ से हुआ है| इस किताब और यूपी की राजनीति से सम्बन्धित कुछ सवालों पर उनसे हुई चर्चा के अंश प्रस्तुत हैं|
‘यदा यदा हि योगी’ के जरिये आप मुख्यमंत्री योगी के सत्ता के एक साल को किस नज़र से देखते हैं?
मैं समझता हूं कि उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री के कामकाज का आंकलन एक साल में करना नाइंसाफ़ी होगा| यूपी बहुत बड़ा प्रदेश है और बीजेपी को 15 साल बाद मौका मिला है वहां सरकार बनाने का। किसी भी प्रदेश के विकास में सरकारी मशीनरी और खासतौर से आला अफसरों का बड़ा हाथ होता है और अफसर आमतौर पर राजनेताओं से ज़्यादा तेज़, ज्यादा प्रशासनिक अनुभव वाले होते हैं। वे पहले अपने नेताओं का दम-ख़म परखते हैं| मैं समझता हूं इस इम्तिहान में योगी आदित्यनाथ बेहतर रहे हैं और अफसरों को समझ आने लगा है कि योगी जैसे मुख्यमंत्री को बहानों से नहीं चलाया जा सकता|
योगी की विधानसभा गोरखपुर के लोग योगी के बारे में क्या सोचते हैं?
गोरखपुर के बाहर के लोग इस बात पर हैरान हो सकते हैं क्योंकि देश में योगी की इमेज कट्टर हिन्दूवादी नेता की है । उनकी राजनीति के शुरुआती दिनों में गोरखपुर और आसपास के इलाकों में भी बहुत से लोग ऐसा समझते थे, लेकिन बाद में उनकी इमेज में बहुत बदलाव आया और गोरखपुर में गोरक्षनाथ पीठ के महंत के तौर पर उनकी मान्यता और सम्मान है, साथ ही मठ में योगी बिना किसी भेदभाव के सबके काम और तकलीफ को देखते हैं| गोरक्षनाथ पीठ के खिचड़ी मेला में सबसे ज़्यादा दुकानें मुस्लिम व्यापारियों की होती हैं|
‘यूपी का मुख्यमंत्री’ होना अन्य किसी राज्य के ‘मुख्यमंत्री’ होने से किन मायनों में अलग है?
यूपी की तुलना देश के किसी दूसरे राज्य से की ही नहीं जा सकती| सबसे बड़ा राज्य, तमाम धर्म और जातियों की जकड़ी हुई राजनीति, अपराध का बोलबाला और सबसे ज़्यादा राजनीतिक समझ रखने वाले लोग। हर दिन एक नई चुनौती और समस्याओं का इतना बड़ा ढेर कि आप चाहें कितना भी काम कर लें, बहुत सारा बाकी रह जाएगा|
आम लोगों में ‘संन्यास’ संसार त्याग कर विमुख हो जाने का प्राय: माना जाता था, लेकिन योग और संन्यास के बाद सत्ता के पदों पर आसीन होते लोगों को समाज किस तरह देख रहा है?
सच तो यह है कि राजनेताओं की विश्वसनीयता तेज़ी से कम हुई है। अब आम आदमी यूं ही भरोसा नहीं करता| पिछले कुछ साल में राजनीति में बहुत से साधु सन्यासी आए हैं और इसे कहने में कोई संकोच नहीं कि ज़्यादातर ने निराश किया है, लेकिन योगी पर अब भी भरोसा बाकी है और मैंने यूपी में दौरे के वक्त महसूस किया कि आम आदमी को लगता है कि अगर साथ के लोगों ने उन्हें कुछ करने दिया तो योगी कुछ कर सकते हैं और फिलहाल उन्हें भ्रष्ट राजनेता के तौर पर नहीं देखते|
अंत में एक सवाल, ‘यूपी की राजनीति का क्या भविष्य’ आप देख पा रहे हैं ?
भविष्य कोई नहीं जानता, लेकिन अब यूपी में भी लोग जातिवादी राजनीति से उकताने लगे हैं और धर्म के बहाने से भले ही किसी हद तक 2017 का चुनाव जीता गया हो लेकिन 2022 के लिए तो काम करना ही पड़ेगा| यूपी की तस्वीर बदलना ज़रुरी है|