मॉरीशस में हिंदी और भोजपुरी भाषा को सम्मान दिलाने के अलावा, सरिता बूधू भारत में भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिलाने के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने कई देशों की यात्राएं की हैं और हिंदुत्व एवं मॉरीशस के सामाजिक और सांस्कृति इतिहास विषय पर यूरोप, अमेरिका, यूके, भारत, अफ्रीका और यूएसए में कई व्याख्यान दिए हैं। वे अब तक करीब दर्जन भर किताबें लिख चुकी हैं। जागरणहिंदी के लिए उनसे स्मिता ने बातचीत की

– हिंदू रीति-रिवाजों पर आधारित 'कन्यादान' किताब लिखने के लिए किसने प्रेरित किया?
मॉरीशस में हिंदू रीति-रिवाजों पर आधारित खूब विवाह होते हैं। अक्सर पंडित लोग वैवाहिक मंत्र तो पढ़ देते हैं, लेकिन उसका मतलब नहीं बताते। युवाओं में यह जिज्ञासा बनी रहती है कि विवाह और विवाह के दौरान पढ़े गए मंत्रों के मतलब क्या हैं? कभी-कभार कुछ बच्चे मुझसे भी इस बारे में पूछा करते। मैंने भी पारंपरिक रूप से शादी की, लेकिन क्यों किया नहीं जान पाई। मुझे लगा कि हिंदू विवाह के बारे में सही जानकारी देना मेरा दायित्व है। और मैं इसे लिखने के लिए प्रेरित हुई। मैं सिर्फ सौ पेज में सारी चीजों की जानकारी देना चाहती थी। शुरुआत में मैं बिहारी मूल खासकर उत्तर-पूर्व भारत के विवाहों पर ही केंद्रित थी, लेकिन आगे मैं गहराई में जाकर लिखने लगी। मैंने वैदिक काल से लेकर एंथ्रोपॉलॉजी तक के बारे में लोगों से बातचीत की। कई अलग-अलग पुस्तकें पढ़ीं। नोट लिया। भारत आकर कई अलग-अलग विवाह में शामिल हुई। गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगू विवाहों में भी शामिल हुई। रिसर्च किया। तब मैंने पाया कि सारे देश में विवाह के कस्टम्स ऐंड ट्रेडिशंस अलग-अलग हैं। ऊपर से असमान दिखने के बावजूद उनके अर्थ एक ही हैं, यानी संपूर्ण देशवासी एक सूत्र से बंधे हैं।

– क्या आप मॉरीशस में ही पली-बढ़ी हैं?
मैं चौथी पीढ़ी से हूं। मेरे पिताजी के परदादा मक्खन सिंह यूपी के बलिया से गए थे। उस समय अवध, बिहार, बंगाल और उड़ीसा सब एक ही प्रेसिडेंसी में थे। 1872 में माता जी की तरफ से लोग आरा, बिहार से गए थे। पिताजी भी आरा के सुंदरपुर कोरिया गांव से गए थे। मुझे प्रधानमंत्री द्वारा ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया सम्मान मिल चुका है। मुझे परमानेंट वीजा भी मिल चुका है। अब भारत आने-जाने में कोई दिक्कत नहीं होती है।

– क्या मॉरीशस में हिंदी पढ़ाई जाती है?
मॉरीशस में हिंदी की पढ़ाई प्राइमरी स्कूल से यूनिवर्सिटी लेवल तक होती है। मैं जिस समय स्कूल जाती थी, उस समय स्कूलों में हिंदी नहीं पढाई जाती थी। सायंकालीन पाठशालाओं में जिसे 'बैठका' कहते हैं, उसमें लोग स्वतंत्र रूप से हिंदी पढ़ाते थे। मैं उसमें हिंदी क्लासेज में भाग लेती थी। मैंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से ज्योग्राफी ऑनर्स के साथ बीए किया। जब मैं वापस मॉरीशस आई, तो पाया कि भारतीय भाषाओं को सहेजने की जरूरत है। मैं हिंदी को बढ़ावा देने में जुट गई। न सिर्फ हिंदी की पढ़ाई से जुड़ी, बल्कि भारत और मॉरीशस सरकार के सहयोग से मॉरीशस में स्थापित विश्व हिंदी सचिवालय से भी जुड़ गई। इसके माध्यम से मैं न केवल विश्व हिंदी सम्मेलनों की देखरेख करती हूं, बल्कि यूएन में हिंदी को बढ़ावा भी देती हूं।

– 'भोजपुरी बोल' मिशन की शुरुआत किस तरह हुई?
मॉरीशस में भोजपुरी बोली जाती है। इसे पहले 'कलकतिया भाषा' कहा जाता था। दरअसल, बड़ी संख्या में भोजपुरी बोलने वाले लोग कलकत्ता से मॉरीशस गए थे। मैंने पाया कि इस भाषा में संस्कृति गहरे तक रची-बसी है। लोकगीत, मुहावरों, किस्से-कहानियों से यह भाषा काफी समृद्ध है। युवा इसे बोलने में थोड़ा हिचकिचाते हैं। उन्हें लगता है कि यह बूढ़े लोगों की भाषा है। 1982 से मैंने संपूर्ण विश्व में इसके प्रचार-प्रसार के लिए कैंपेनिंग शुरू कर दी और एक संस्था मॉरीशस भोजपुरी इंस्टीट्यूट स्थापित किया। बाद में इसने आंदोलन की शक्ल ले लिया। रिसर्च के क्रम में मैं बिहार-यूपी के भोजपुरी क्षेत्र में 30 से भी अधिक बार जा चुकी हूं। चंपारण से कैमूर, मुंगेर, भागलपुर, दरभंगा तक जा चुकी हूं।
– अब तक कितनी किताबें लिख चुकी हैं?
मैं हिंदी, अंग्रेजी, भोजपुरी, फ्रेंच में 12 किताबें लिख चुकी हूं। मैं पत्रकार भी हूं। अंग्रेजी और फ्रेंच में मॉरीशस में प्रकाशित होने वाले अखबारों के लिए लिखती हूं। इन दिनों मैं 'भोजपुरी में बोलें, भोजपुरी में सोचें और भोजपुरी में गाएं आंदोलन लेकर चल रही हूं, ताकि युवा और बच्चे अधिक रुचि लें। 2012 में वहां की सरकार ने पार्लियामेंट में 'भोजपुरी स्पीकिंग विजन कायम किया तथा मुझे उसका अध्यक्ष घोषित किया।  
वर्क ऐंड कल्चर मिनिस्ट्री के अंतर्गत इस काम को मैंने नियमित तौर पर करना शुरू किया। इंडिया और डाएस्पोरा कंट्री में जहां-जहां भोजपुरी बोली जाती है, उन सभी को एकसूत्र में बांधकर इसे बढ़ा रही हूं। पूर्वांचल एकता मंच के माध्यम से आठवें भोजपुरी सम्मेलन में भाग ले चुकी हूं। भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में स्थान दिलाने के लिए मैं लगातार प्रयासरत रहूंगी, जिस तरह यह नेपाल और मॉरीशस में है। दरअसल, मान्यता अकादमिक स्तर पर मिलनी चााहिए। विश्व में भोजपुरी बोलने वाले लगभग 20 करोड़ लोग हैं।  
– लिखने के लिए समय कब निकालती हैं?
सुबह उठकर लिखती हूं या दोपहर या फिर शनिवार या रविवार को जब भी समय मिलता है, लिखती हूं। लेखन और पढ़ाई दोनों जारी रहता है। लिखने के लिए पढऩा बेहद जरूरी होता है।  
– क्या आपने कभी कविता-कहानियां लिखी हैं?
कुछ शॉर्ट स्टोरीज और एक-दो कविताएं लिख चुकी हूं। मैं फैक्चुअल बुक्स अधिक लिखती हूं। नॉवेल लिखने के लिए समय चाहिए। मैं एक सोशल एक्टिविस्ट हूं। घूम-घूमकर प्रचार करती हूं। एक साल में चार पांच बार भारत आ जाती हूं। प्रमोशन मेरा काम है, तो फिर किताब किस तरह लिख सकती हूं?
– मॉरीशस का साहित्य लेखन भारत के साहित्य लेखन से कितना अलग है?
मॉरीशस में हम जो हिंदी लिखते हैं, इसकी अलग पहचान है। इसे गिरमिटिया हिंदी या प्रवासी हिंदी बोला जाता है। मॉरीशस के प्रमुख हिंदी लेखक अभिमन्यु अनत, रामदेव धुरंधर हैं जिनमें से अनत जी का निधन हो चुका है।  इनके अलावा, कई युवा लेखक कविताएं और उपन्यासलिख रहे हैं। 
– वहां अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है?
मॉरीशस स्वतंत्र देश है। अभिव्यक्ति की भी स्वतंत्रता है। मॉरीशस एक छोटा भारत है। बहुत से लोग भारत से यहां व्यवसाय और भ्रमण के लिए आते हैं।