सोशल मीडिया पर इन दिनों विजयश्री तनवीर के कहानी–संग्रह ‘अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार’, जो विवाहेतर संबंधों पर केन्द्रित है, की चर्चा है। इस किताब सहित लेखन संबंधी उनकी भावी योजनाओं पर विजयश्री से बातचीत की है पीयूष द्विवेदी ने।
सवाल– विवाहेतर संबंधों जैसा ‘बोल्ड’ विषय चुनने के पीछे कोई ख़ास कारण?
जवाब– यह सवाल मुझसे अक्सरहाँ पूछा गया। दरअसल जिन्होंने किन्नरों पर लिखा, समलैगिंक रिश्तों पर लिखा, वेश्याओं पर लिखा, बलात्कार पर लिखा, उनसे भी ऐसे ही सवाल किए गए। मेरे लिए 'विवाहेतर सम्बंध' बोल्ड नहीं एक गंभीर और महत्वपूर्ण विषय है। क्योंकि आजकल यह बहुत आम हो गया है। लोगों के पास ऐसी ख़्वाहिशों का ज़खीरा है। मैं इन रिश्तों की पक्षधर नहीं हूँ मगर ऐसे लोग जो इन रिश्तों में मुब्तिला हैं, वे मेरे लिए घृणास्पद नहीं हैं। वे कमज़ोर और बेक़ाबू लोग हैं। और यह एक बड़ा सच है कि अंततः इन रिश्तों से महज़ हताशा, अवसाद और विघटन ही हिस्से आता है। मैंने ऐसे ही हताश और टूटे हुए लोगों की कहानियाँ लिखी हैं।
सवाल – इन कहानियों में कितना यथार्थ और कितनी कल्पना है?
जवाब – सब कुछ मनगढंत नहीं होता। समझ लीजिए आधी हकीक़त आधा फ़साना। लेखक एक किस्म का चित्रकार होता है। वह इधर –उधर से कुछ सच्ची मगर काली सफ़ेद तस्वीरें बटोर लेता है। और फिर उन्हें अपनी कल्पना के रंग भरकर सुंदर बना देता है। मेरा लिखा भी ऐसा ही है। 'अनुपमा गांगुली ' से बंगाल की लोकल ट्रेन में वास्ता हुआ। मैंने उसे थोड़ा रंगीन बना दिया। 'खिड़की' और छोटी कहानियों में सबसे कम रंग भरे गए।
सवाल – क्या ऐसा ख़ास है कि कोई आपकी किताब पढ़े?
जवाब – मेरे लिए शायद यह सबसे कठिन सवाल है। मैं अपने लिखे की प्रशंसक नहीं हूँ। लिखने के बाद भी हमेशा कोई अभाव सा अपने अंदर पाती हूँ। तो कैसे कहूँ कि मेरी इस किताब में क्या ख़ास है। इसके जवाब में मेरे पास वे तमाम लोग हैं जिन्होंने इन कहानियों को ख़ुद से बेतरह जोड़ लिया है। जो बस मेरी अगली किताब के इंतज़ार में हैं। मुझे सिर्फ़ उनके यक़ीन पर यक़ीन होता है कि यह ज़रूर ही कोई अच्छी किताब है क्योंकि मेरे प्यारे पाठक इन कहानियों के प्यार में हैं।
सवाल – इसी किताब में जिक्र है कि इससे पूर्व आपका एक कविता–संग्रह भी आ चुका है, सो कविता छोड़ कहानी की तरफ कैसे मुड़ गयीं?
जवाब – ज़्यादातर लिखने वालों की तरह मेरी शुरुआत भी कविताओं से हुई। तब कविताओं की समझ भी न थी। मुझे हमेशा लगा कि कविता लिखने से अधिक कहने की चीज़ है। मैंने यह भी पाया कि कविता में नितांत निजीपन होता है। अक्सर लिखने वाला ही जानता है कि उसने क्या लिखा है और कभी– कभी तो वह ख़ुद भी नहीं। कहानी से पाठक ख़ुद को बेहतर जोड़ पाता है। इसके अलावा कविता लिखने वालों की भरमार है। ज़्यादातर प्रकाशकों को कवियों की ज़रूरत नहीं रह गई है।
सवाल – भविष्य में क्या लिखने का इरादा है? कोई विषय है योजना में?
जवाब – अपनी निजी ज़िन्दगी में मैं निहायत ही बेढंगी हूँ। योजनाबद्ध तरीके से कभी कुछ न किया। लिखने का मन हुआ तो आधी रात कागज़ कलम उठा लिए और न मन बना तो महीनों निठल्ली पड़ी रही। अभी मेरे पास कुछ अधूरी कहानियाँ हैं जो इन कहानियों से बिल्कुल अलहदा होंगी। उन्हें तरतीब में लाना है। साथ ही एक उपन्यास के लिए अच्छी ज़मीन है। यह एक हिन्दू–मुस्लिम प्रेमी जोड़े की कहानी होगी जिसमें उनके साथ होंगी एक होने के बाद उनके जीवन में उपजी विषमताएं।