मुंगेरः फैयाज़ रश्क़ नहीं रहे. कवि ध्रुव गुप्त ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट पर साहित्यप्रेमियों के साथ इस सूचना को साझा करते हुए लिखा, 'बिहार के एक बहुत अज़ीम और बेहतरीन शायर फ़ैयाज़ रश्क़ का गुज़र जाना मुंगेर में एक गहरा सन्नाटा छोड़ गया है. बेहद शालीन, सरल, मितभाषी और हंसमुख फ़ैयाज़ ने बहुत ज्यादा नहीं लिखा, लेकिन जितना भी लिखा उस पर उनके व्यक्तित्व की गहरी छाप थी. सीधे और सरल लफ़्ज़ों में बड़ी-बड़ी बातें कह देने की महारत उन्हें हासिल थी. अपने मुंगेर जिले के कार्यकाल में मैं जिले के कवियों, शायरों की एक गोष्ठी हर महीने बुलाता था. कभी अपने आवास पर, कभी किसी मित्र कवि-शायर के आवास पर. फ़ैयाज़ उन नशिस्तों में एक ज़रूरी और आत्मीय उपस्थिति थे जो अपने फ़न से ही नहीं, सादगी से भी सबका दिल जीत लेते थे. मित्र फ़ैयाज़ रश्क़ को ख़िराज ए अक़ीदत उनके चंद अशआर के साथ!

ख़्यालो ख़्वाब को परवाज़ देता रहता हूं
मैं अपने आपको आवाज़ देता रहता हूं

पलट के आएंगे एक दिन जरूर अच्छे दिन
मैं अपने तौर से आवाज देता रहता हूं

लगा के सीने से फैयाज़ इसके पैकर को
ग़ज़ल को रात दिन एजाज़ देता रहता हूं.

नमन, फैयाज़ रश्क़!