भागलपुरः माध्यम संस्था की ओर से स्थानीय गांधी शांति प्रतिष्ठान में 'आज का दौर और हिंदी साहित्य विषय' पर एक व्याख्यान आयोजित किया गया. मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ आलोचक और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष चौथी राम यादव ने कहा कि आज का दौर भूमंडलीकरण से पूर्णत: ग्रसित है. इसे लेकर हमें जो अच्छे ख्वाब दिखाए गए थे, उसका बुरा परिणाम अब सामने आ रहा है. यह हमारी अस्मिता से हमें दूर कर रहा है. आज हम मानवीय गुणों को खोते जा रहे हैं. इसकी रक्षा के लिए साहित्यकारों को आगे आना होगा. उन्होंने साहित्यकार भीष्म साहनी की कहानी 'चीफ की दावत' का जिक्र करते हुए कहा कि हम कॉरपोरेट संस्कृति को अपनाने के क्रम में अपनी मां तक के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं उन्हें असम्मान समझ कर छुपाते हैं.जो चीफ सामने आते हैं उनका स्वागत करने के लिए हम अपने मानवीय गुणों को खोते जा रहे हैं. पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर व वरिष्ठ आलोचक  अरुण होता ने कहा कि जब साहित्य पर सत्ता का प्रभाव हो तो ऐसी स्थिति में आज का दौर अराजक कहा जा सकता है. उन्होंने कहा आज साहित्यकारों को बोलने की आजादी नहीं है, कहीं ना कहीं उन्हें प्रताड़ित किया जाता है. इससे साहित्यकार सच लिखने से परहेज करते हैं.
इससे पूर्व कार्यक्रम के संचालक प्रोफेसर प्रेम प्रभाकर ने विषय प्रवेश करवाते हुए कहा कि साहित्य समाज का आईना होता है. पर आज का साहित्यकार इतना दुर्बल होता जा रहा है कि साहित्य का मकसद नहीं प्रकट कर पा रहा है. समाज को अगर बेहतर दिशा में ले जाना है, तो उसे साहित्य को आगे बढ़ाना होगा, उसे सत्ता या किसी लाभ लोक से हटकर अपनी धर्म को निभाना होगा. सत्ता प्रतिष्ठानों के लिए की गई रचना से साहित्य अपने मूल की रक्षा नहीं कर सकता. साहित्य मूल्य संरक्षण का भी नाम है, साहित्यकार संवेदना प्रकट न करें, वे इसके मूल्यों की रक्षा करें. हिंदी विभाग के प्रोफेसर अरविंद कुमार व प्रो. किशन कालजयी ने दोनों अतिथियों का पुष्पगुच्छ और अंग वस्त्र देकर स्वागत किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ समाजसेवी रामशरण ने किया. इस मौके पर डॉ अरविन्द, डॉ योगेन्द्र, प्रकाश चंद गुप्ता, संजय कुमार, नीरज कुमार सिन्हा, मंजीत सिंह, प्रकाश कुमार, मो. जावेद खान, सुनील जायसवाल, डॉ. भूपेन्द्र मंडल, जयकांत यादव आदि साहित्यप्रेमी, अध्यापक व छात्र मौजूद थे.