कोलकाता: सामाजिक व साहित्यिक सरोकारों की पत्रिका लहक द्वारा दिया जाने वाला मानबहादुर सिंह लहक सम्मान अगले वर्ष मधुरेश और कान्ति कुमार जैन को दिया जाएगा. आयोजकों के अनुसार यह पुरस्कार नहीं, बल्कि उन लेखकों का सम्मान है, जिन्होंने ईमानदारी से साहित्य की सेवा करते हुए जीवन भर प्रतिबद्ध रहते हुए मौलिक व जरूरी काम किया. मानबहादुर सिंह लहक सम्मान के सचिव उमाशंकर सिंह ने बताया कि यह सम्मान अपने उन अग्रजों का स्मरण है जिनके अध्ययन व उनके योगदान को जाने बगैर हम साहित्य की वर्तमान चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर सकते हैं. यह उस परम्परा का सम्मान है जिनके द्वारा लोकधर्मिता का दायरा बढ़ा. यह सम्मान अब तक नीलकान्त, महेन्द्रभटनागर, धनंजय वर्मा और मलय को दिया जा चुका है. पांच स्दस्यीय मानबहादुर सिंह लहक सम्मान चयन कमेटी में सुधीर सक्सेना, नासिर अहमद सिकन्दर, निर्भय देवयांस,शिवेन्द्र सिंह और उमाशंकर सिंह परमार शामिल हैं.
आलोचक रामप्रकाश शंखधार उर्फ़ मधुरेश का जन्म 10 जनवरी, 1939 को हुआ था. उनका पहला आलोचना आलेख वर्ष 1962 में 'लहर' में छपा था. उनकी चार दर्जन के करीब आलोचनात्मक कृतियां प्रकाशित हैं. उनकी चर्चित कृतियों में हिंदी कहानी विचार और प्रतिक्रिया, हिंदी उपन्यास-संवेदना और विकास, देवकीनन्दन खत्री, रांगेय राघव, राहुल का कथा कर्म, हिंदी कहानी अस्मिता की तलाश, मेरे रामविलास शर्मा, हिंदी प्रगतिशील आलोचना और शिवदान सिंह चौहान, आलोचक का आकाश, शिनाख्त, संवाद और सहकार, हिंदी कहानी का विकास, हिंदी उपन्यास का इतिहास, हिंदी आलोचना प्रतिवाद की संस्कृति, हिंदी आलोचना का विकास शामिल है.
आलोचक कान्तिकुमार जैन का जन्म 1932 में हुआ. वह सला 1992 में सागर विश्वविद्यालय से सेवा निवृत्त हुए. बुन्देली भाषा और साहित्य व छत्तीसगढ़ की जनपदीय बोलियों पर इनके काम के अलावा हरिशंकर परसाई पर इनकी आलोचना कृति 'तुम्हारे परसाई' सर्वाधिक विश्वसनीय आलोचनात्मक कृतियों में शामिल है. इनकी महत्त्वपूर्ण कृतियों में छत्तीसगढ़ी बोली व्याकरण और कोश, भारतेंदु पूर्व हिंदी गद्य, कबीरदास, इक्कीसवीं शताब्दी की हिंदी, छायावाद की मैदानी और पहाड़ी शैलियां, शिवकुमार श्रीवास्तव: शब्द और कर्म की सार्थकता,सैयद अमीर अली ‘मीर’, लौटकर आना नहीं होगा, जो कहूँगा सच कहूँगा, बैकुंठपुर में बचपन, महागुरु मुक्तिबोध : जुम्मा टैंक की सीढ़ियों पर,पप्पू खवास का कुनबा आदि शामिल हैं.