नई दिल्ली: भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, राष्ट्रपति निवास, शिमला ने नई दिल्ली के आईजीइनसीए ऑडिटोरियम में छठे रविंद्रनाथ टैगोर स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया, जिसमें उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडु ने 'नए भारत की परिकल्पना' विषय पर व्याख्यान दिया. इस अवसर पर संस्थान के निदेशक प्रोफ़ेसर मकरंद आर. परांजपे ने एम. वेंकैया नायडु की प्रशंसा करते हुए कहा कि वे न केवल एक अच्छे पाठक हैं बल्कि देश में राष्ट्रीय महत्त्व के 75 से अधिक संस्थानों के संस्थापक भी हैं. संस्थान के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर कपिल कपूर ने अपने भाषण में कहा कि भारत की संस्कृति में सदैव 'योग' को 'भोग' से अधिक महत्व दिया गया है. यह हमारे सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतिबिंब है जो कि हमारे लोकजीवन में निरंतर विद्यमान रहा है. उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडु ने मानव जीवन एवं समाज से जुड़े अनेक विषयों को छुआ. उन्होंने कहा कि हिन्दू शब्द हमारी संस्कृति एवं सभ्यतागत लोकाचार से जुड़ा हुआ है. हमारी सभ्यता इतने वर्ष इसलिए जीवित रही क्योंकि वसुधैव कुटुम्बकम का विचार हमें गति प्रदान करता है. हम सदैव साझा करने में विश्वास रखते हैं. उन्होंने मातृभाषाओं को बढ़ावा देने की आवश्यकता बतलाते हुए कहा कि हम सदैव अपनी भाषाओं में बेहतर संवाद एवं अभिव्यक्त कर पाते हैं.  हमारी मातृभाषा हमारी आंखों की तरह है जो हमें मौलिक दृष्टि प्रदान करती है, वहीं अन्य भाषाएं उन आखों पर लगा चश्मा है जो हमारी दृष्टि का विस्तार करती है.
गांवों के महत्व को दर्शाते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत की आत्मा गावों में बसती है.  स्वयं महात्मा गांधी ने कहा था कि 'ग्राम' राज्य के बिना हमारा 'राम' राज्य का सपना हमेशा अधूरा रह जाएगा. महात्मा गांधी अपने जीवन में सदैव रामराज्य की वकालत करते हैं. उनके सपनों का रामराज्य वो था जिसमें भूख, भय, भ्रष्टाचार और भेदभाव का कोई स्थान नहीं हो. महात्मा गांधी का यह सपना था कि समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति के दर्द को भी समझा जाए,  'नए भारत की परिकल्पना' में वो तबका भी प्रमुखता से शामिल है. कार्यक्रम के अंत में संस्थान के सचिव कर्नल (डॉ.) विजय तिवारी ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा. नायडु ने प्रोफेसर मकरंद आर. परांजपे द्वारा लिखित पुस्तक 'स्वामी विवेकानंद: हिन्दुइज्म एंड इंडियाज रोड टू मॉडर्निटी' पुस्तक का भी विमोचन किया. आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी, डीन प्रोफेसर रमेश गौर, निदेशक प्रशासन लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) आर ए रांगणेकर, भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के पुस्तकालयाध्यक्ष प्रेम चंद, अध्येता एवं अधिकारी, मीडिया कर्मी एवं कई प्रख्यात विद्वान उपस्थित थे.