नई दिल्ली: साहित्य अकादमी द्वारा 'अंतरराष्ट्रीय आदिवासी भाषा वर्ष' के अवसर पर आयोजित दो दिवसीय 'अखिल भारतीय आदिवासी लेखक उत्सव' का आखिरी दिन 'भारत की आदिवासी भाषाएं: संरक्षण एवं पुनरोद्धार' विषय पर परिचर्चा और कहानी एवं कविता-पाठ पर केंद्रित था. पहले सत्र की अध्यक्षता के. वासमल्ली ने की, जिसमें धर्मेंद्र पारे (कोरकू), जॅय सिंहतोकबी (कोर्बी), सृजन सुब्बा (लिंबू), अमल राभा (राभा) एवं सुबोध हांसदा (संताली) ने अपने आलेख प्रस्तुत किए. के वासमल्ली ने तमिलनाडु की तोडा जनजाति और उसकी भाषा के बारे में बताते हुए कहा कि इस भाषा की वर्णमाला में 54 अक्षर हैं और इसके बोलने वाले मात्र 1500 लोग बचे हैं. इनके गीत मुख्यता मौसम के वर्णन पर आधारित हैं. उन्होंने कहा कि इनका साहित्य आज भी केवल वाचिक रूप में ही उपलब्ध है. धर्मेंद्र पारे ने कोरकू भाषा के बारे में बताते हुए कहा कि इसको बोलने वाले मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में हैं और यह मुंडा समुदाय की भाषा के रूप में पहचानी जाती है. कोरकू का मतलब 'मनुष्य' है. उन्होंने कहा कि इसकी कोई लिपि नहीं है और देवनागरी लिपि में लिखकर इसकी कुछ किताबें प्रकाशित की गई हैं. जॅय सिंहतोकबी ने कोर्बी भाषा, सृजन सुब्बा ने लिंबू भाषा, अमल राभा ने राभा भाषा और सुबोध हांसदा ने संताली भाषा की वर्तमान स्थितियों और भविष्य कीयोजनाओं के बारे में विस्तार से चर्चा की.
कविता-पाठ सत्र की अध्यक्षता महादेव टोप्पो ने की और उत्तरा चकमा (चकमा), अंजनी मारकम (गोंडी), पूर्णिमा सरोज (हल्बी), एस. दखार (खासी), हर्षल वतुजी गेडाम (माडिया गोंडी) और सोमा सिंह मुंडा (मुंडारी) ने अपनी-अपनी भाषाओं की रचनाएं प्रस्तुत कीं. कहानी-पाठ सत्र की अध्यक्षता मदन मोहन सोरेन ने की और पाइक्रे चम्पिया ने हो, श्रीकृष्ण जी. काकड़े ने कोरकू, बीरेंद्र कु. सोय ने मुंडारी और चारु मोहन राभा ने राभा भाषा में अपनी कहानियां प्रस्तुत कीं. कार्यक्रम का अंतिम सत्र भी कविता-पाठ के लिए समर्पित था, जिसकी अध्यक्षता वसंत निरगुणे ने की और देश भर से पधारे भूटिया, देहवाली, लेप्चा, लिंबू, मोनपा, राजबोंगशी, राजगोंडी, राठवी, संताली, सोलिगा और तमाङ आदिभाषाओं के कवियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं. कार्यक्रम का समापन वक्तव्य साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने दिया. उन्होंने कहा कि मातृभाषा केवल संवाद के लिए ही नहीं बल्कि हमारी संस्कृति के विकास के लिए भी बहुत आवश्यक हैं. इनका संरक्षण आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है. अंत में साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया. कार्यक्रम के विभिन्न सत्रों का संचालन संपादक हिंदी अनुपम तिवारी ने किया.