नई दिल्लीः लॉकडाउन का संकट और राम मन्दिर निर्माण के आरंभ का आह्लाद कवियों के लिए उर्जा का काम कर रही है। उनकी लेखनी और सृजनशीलता उर्वर हो रही है. ऐसा मानना है 'माटी की सुगन्ध' समूह से जुड़े रचनाकारों का। समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन राष्ट्रीय कवि सम्मेलन के आयोजन के मद्देनज़र सबने यह माना कि लॉकडाउन ने उनकी मेधा को बढ़ा दिया है। इस कवि सम्मेलन की अध्यक्षता गीतकार डॉ जयसिंह आर्य ने की। मुख्य अतिथि हरगोबिन्द झाम्ब कमल थे, तो सान्निध्य अतिथि के रूप में केसर शर्मा कमल और विशिष्ट अतिथि की भूमिका डॉ जयप्रकाश मिश्र ने निभाई. इस कवि सम्मेलन के संयोजक भारत भूषण वर्मा थे. संचालन का जिम्मा डॉ विजय प्रेमी के जिम्मे था। कवि सम्मेलन की शुरुआत सुषमा सवेरा की सरस्वती वन्दना की प्रस्तुति से हुई। इस अवसर पर कवियों ने अपने को खुलकर व्यक्त किया। डॉ जयसिंह आर्य ने पहली कविता से ही भगवान राम की लौ लगा दी। उनकी कविता के बोल थे, “दिल के आले को तू सजाकर रख, उसमें एक दीप को जलाकर रख. दूर भागेंगे देख देश के अंधियारे, राम-सीता से लौं लगाकर रख…
कवि सम्मेलन में अन्य कवियों ने भी भगवान राम पर आधारित कविताएं ही पढ़ीं। कुछ कविताओं की मुख्य बानगियां इस प्रकार हैं. हरगोबिन्द झाम्ब कमल ने पढ़ा, “अजब है उसकी लीला, ग़ज़ब उसकी माया है.जो सृष्टि का निर्णय सुनाता, अपना जग से लिखवाया है.” केसर शर्मा कमल की कविता के बोल थे, “जनकपुरी में स्वयंबर रचा, धनुष तोड़ इतिहास रचा. पंचवटी में वास किया था, खर-दूषण का नाश किया था.” डॉ जयप्रकाश मिश्र की कविता की शुरुआती पंक्तियां थीं, “जिसके हिरदे कालिमा, कलुषित रहें विचार. उसको काला ही दिखा, सब उज्ज्वल संसार.” इस अवसर पर भारत भूषण वर्मा ने सुनाया, “आस्था राम से जग में, रास्ता राम से जग में. स्वार्थियों से क्या लेना, वास्ता राम से जग में.” डॉ विजय प्रेमी की कविता के बोल थे, “नाम के लिए, ना किसी दाम के लिए.
जीना है तो जियो श्री राम के लिए.” इनके अलावा कवि सम्मेलन में रामनिवास भारद्वाज जख्मी, हरेन्द्र प्रसाद यादव, खेमचन्द सहगल, डॉ पंकज वासिनी, प्रीतम सिंह प्रीतम, प्रदीप मायूस, नरेश लाभ, धर्मेन्द्र अरोडा मुसाफिर, सुषमा सवेरा और मोनिका शर्मा ने भी अच्छी कविताएं सुनाईं