भोपालः मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में रंग प्रयोगों के प्रदर्शन की श्रृंखला 'अभिनयन' में यक्षगान शैली में लोकनाट्य 'चक्रव्यूह' की प्रस्तुति कर्नाटक के कलाकार संवीज स्वर्णा के निर्देशन में संग्राहालय सभागार में हुई. इस लोकनाट्य प्रस्तुति में मंच पर सुब्रह्मण्यम, शैलेष, अभिनव, शांताराम, कृष्णमूर्ति, निश्चवल, सुजीत, अभिनव, रतनाकर आदि ने अपने कलात्मक अभिनय कौशल से मनमोहक प्रस्तुति दी. महाभारत के युद्ध में भीष्म के बाद द्रोणाचार्य कौरव-सेना के सेनापति बनाये गये. दुर्योधन के उकसाने पर उन्होंने अर्जुन की अनुपस्थिति में चक्रव्यूह का निर्माण किया, जिसे अर्जुन के अतिरिक्त कोई तोड़ नहीं सकता था. महाराज युधिष्ठिर को इस आसन्न संकट को देखकर निराश और दु:खी बैठे देख अभिमन्यु ने चक्रव्यूह को अकेले ही भेदने की बात कही और बताया कि कैसे जब वह माता के गर्भ में था और उन्हें निद्रा नहीं आ रही थी तो अर्जुन ने उनका मन बहलाने के लिये उन्हें चक्रव्यूह-भेदने की दिव्य विद्या बताई थी. पर चक्रव्यूह के छ: द्वार तोड़ने तक की बात उन्होंने सुनी थी, किंतु माताजी को निद्रा आ जाने पिता अर्जुन ने आगे की कथा नहीं सुनाई, अत: मैं चक्रव्यूह में प्रवेश करके उसके छ: द्वार तोड़ सकता हूं, किंतु सातवां द्वार तोड़कर निकलने की विद्या मुझे नहीं आती. इस पर भीम ने अपनी गदा से सातवां द्वार तोड़ देने की बात कही.
यह लोकनाट्य वीर अभिमन्यु की उसी कथा पर केंद्रित है, जिसमें अर्जुन एवं सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु महाभारत महाकाव्य में चक्रव्यूह रचना के प्रात:काल युद्ध आरम्भ होने पर कैसी शूर वीरता दिखाता है. रणांगन में चक्रव्यूह के मुख्य द्वार का रक्षक जयद्रथ है. उसे अर्जुन के अतिरिक्त शेष पाण्डवों को जीतने का भगवान शंकर से वरदान प्राप्त है. अभिमन्यु अपनी बाण-वर्षा से जयद्रथ को मूर्च्छित कर चक्रव्यूह के भीतर चला जाता है किंतु वरदानी जयद्रथ भीम आदि अन्य योद्धाओं को रोक देता है. अभिमन्यु की सहायता के लिये भीम और दूसरे योद्धा भीतर नहीं जा पाते. अभिमन्यु अकेला ही अपनी प्रचण्ड बाण-वर्षा से शत्रुओं को व्याकुल कर देता है, जिसमें द्रोणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, शकुनि, शल्य, दुर्योधन आदि महारथी शामिल हैं, जो अभिमन्यु के हाथों बार-बार परास्त होते हैं. द्रोणाचार्य इस बालक के हाथ में धनुष-बाण रहते उस पर जीतना असम्भव बताते हैं तभी कर्ण और छ: महारथी अभिमन्यु पर अन्याय पूर्वक आक्रमण करते हैं. उसके रथ को छिन्न-भिन्न कर धनुष को भी काट दिया जाता है. लोकनाट्य के अंत में अभिमन्यु रथ का पहिया उठाकर शत्रुओं को मारना शुरू करता है तभी दु:शासन का पुत्र अभिमन्यु के सिर पर पीछे से अपने गदे से प्रहार करता है, जिससे महाभारत का यह अद्भुत योद्धा वीरगति को प्राप्त होता है. निर्देशन सराहनीय रहा.