नई दिल्लीः कोरोना काल में बुद्ध पुर्णिमा कई दूरगामी संकेतों के साथ आई. सड़क और गली मोहल्लों में बुद्ध के नाम पर जातीयता का शोर नहीं है. लोग बिना जाने समझे बुद्ध को किसी वर्ग से जोड़ देते हैं. यों तो महात्मा बुद्ध पर दुनिया भर में हजारों ग्रंथ लिखे गए, पर ओशो ने उन्हें जैसे समझा, कम लोगों ने समझा होगा. यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी में आनंद की खोज, जीवन के प्रति जिज्ञासा और सत्य की प्राप्ति के लिए पूरे विश्व में बेहद मेधा से भरा प्रबुद्ध वर्ग सामने आया, जिसने अपने पूर्वजों के विचारों से भिन्न नए-नए विचार प्रतिपादित किए. वस्तुतः ज्ञान की दृष्टि से यह ऐसा युगांतरकारी समय था, जब चीन में कन्फ्यूशियस और लाओ-त्से, फारस में जोरोस्त्र, यूनान में पाइथागोरस तथा भारत में महावीर एवं बुद्ध जैसी महान विभूतियों ने मानवता के हित में नए युग का सूत्रपात कर रही थीं. भले ही इन मनीषियों की शिक्षाएं और जबान अलग- अलग थीं, लेकिन उनका एकमात्र लक्ष्य मानव ज्ञान को नई दिशा की ओर अभिमुख करना था.
इसीलिए वर्ष 2017 में भारत सरकार ने यह तय किया था कि देशभर की स्कूलों में छात्र एनसीईआरटी किताबों के माध्यम से महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं को भी पढ़ेंगे. महात्मा बुद्ध का जन्म लुंबिनी में हुआ. उनका विवाह यशोधरा से हुआ, जिसे वह गोपा कहा करते थे. उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था. जीवन के दर्दनाक दृश्यों को देखकर सिद्धार्थ को यौवन से मोहभंग हो गया और वे गृह त्याग कर शांति की तलाश में निकले. अनेकों वर्ष तप करने के बाद उन्हें ज्ञान का प्रकाश मिला. उन्होंने दुनिया में घूम-घूमकर मानव जाति को अहिंसा पर चलने की सीख दी, अपनी शिक्षाओं का प्रसार किया. अपने पुत्र-पुत्री को भी विदेशों में अहिंसा का प्रचार करने भेजा. समय बदला, स्थिति बदली, समाज की व्यवस्थाएं बदलीं, लेकिन भगवान बुद्ध का संदेश हमारे जीवन में निरंतर प्रवाहमान रहा है. ये सिर्फ इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि, बुद्ध सिर्फ एक नाम नहीं हैं बल्कि एक पवित्र विचार भी है. एक ऐसा विचार जो प्रत्येक मानव के हृदय में धड़कता है, मानवता का मार्गदर्शन करता है.