भोपालः साहित्य सृजन की जन-स्वीकृति की एक स्वस्थ परम्परा स्थापित करते मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन ने 'भवभूति अलंकरण' के लिए वर्ष 2021 तथा 2022 के लिए अनुशंसाएं आमंत्रित की हैं. यह अलंकरण मध्यप्रदेश के साहित्यकारों को उनकी दीर्घ साधना, श्रेष्ठ कलात्मक उपलब्धि और समग्र अवदान के लिए प्रदान किया जाता है. सम्मेलन प्रतिवर्ष भवभूति अलंकरण से सम्मानित किए जाने वाले साहित्यकार के नाम के लिए अनुशंसाएं आमंत्रित करता है. ये अनुशंसाएं सम्मेलन की इकाइयों, सम्मेलन के सदस्यों, प्रदेश के लेखकों, साहित्यिक संस्थाओं और सामान्य जागरूक पाठकों से आमंत्रित की जाती हैं. वरीयता क्रम से तीन साहित्यकारों के नामों की अनुशंसा की जा सकती है. मात्र एक नाम की अनुशंसा भी की जाती है. इसे अनन्य अनुशंसा माना जाता है. अनुशंसा का सुस्पष्ट आधार साहित्यकार की सुदीर्घ साधना, साहित्यिक श्रेष्ठता और समकालीन परिदृश्य में उसकी उपलब्धि और अवदान का विवेचन और मूल्यांकन, सामान्य स्वीकृति और सम्मान होता है. इस अलंकरण का अभिप्राय भवभूति का यह श्लोक है: 

उत्पस्यतेऽस्ति मम कोपि समानधर्मा. 
कालोऽह्ययं निरवधिर्विपुला च पृथ्वी. 
अर्थात हम अपने वरिष्ठ एवं श्रेष्ठ साहित्यकारों के प्रति प्रणत भाव से निवेदित हैं, कि उनके समानधर्मा यहां इसी अवधि में भी मौजूद हैं और उन्हें इस विपुला पृथ्वी और निरवधि काल में अपने समानधर्मा की प्रतीक्षा नहीं करनी होगी.  यद्यपि भवभूति मूलत: कवि- नाटककार थे लेकिन चिंतन और दर्शन के क्षेत्र में उनका उल्लेखनीय योगदान है. अत: इस अलंकरण के लिए साहित्य की सभी विधाओं में किए गए सृजन और समग्र अवदान को गौरवान्वित किया जाता है. 

भवभूति अलंकरण के लिए प्राप्त अनुशंसाओं पर विचार और निर्णय करने के लिए एक निर्णायक समिति का मनोनयन होता है. इस समिति में न्यूनतम तीन और अधिकतम पांच सदस्य होते हैं, जिनका मनोनयन सर्वसम्मति से किया जाता है. निर्णायक समिति में मध्यप्रदेश के सर्वमान्य एवं वरिष्ठ साहित्यकारों और प्रदेश के साहित्यिक परिदृश्य से परिचित अंतरप्रांतीय साहित्यकारों का मनोनयन किया जाता है. इस अलंकरण के तहत रुपए 11 हज़ार की राशि तथा प्रशस्ति पत्र प्रदान किए जाते हैं. निर्णायक समिति की स्वायत्तता के लिए उसकी बैठक में सम्मेलन का कोई पदाधिकारी शामिल नहीं होता. प्राप्त समस्त अनुशंसाएं निर्णायक समिति के सामने विचारार्थ प्रस्तुत की जाती हैं, और समिति इनके आधार पर सर्वाधिक- अनन्य एवं प्रथम अनुशंसा- प्राप्त साहित्यकार के नाम की सिफारिश करती है. यदि समिति के सदस्य सर्वसम्मति से यह अनुभव करें कि प्राप्त अनुशंसाओं में किसी ऐसे साहित्यकार का नाम शामिल नहीं हो पाया है जो उनकी राय में 'भवभूति अलंकरण' के सर्वथा योग्य है, तो उस नाम पर भी समिति विचार कर सकती है. समिति का निर्णय अनिवार्यत: सर्वसम्मति से होता है. सर्वसम्मति के अभाव में निर्णायक समिति भंग कर दी जाती है और नई निर्णायक समिति गठित की जाती है. समिति की अनुशंसा सम्मेलन के लिए बाध्यकारी है. वर्ष 1985 में स्थापित 'भवभूति अलंकरण' से अब तक मुकुटधर पाण्डेय, हरिशंकर परसाई, वियोगी हरि, डॉ रामकुमार वर्मा, रामेश्वर शुक्ल 'अंचल', शिवमंगल सिंह 'सुमन', गिरिजा कुमार माथुर, प्रो प्रमोद वर्मा, नरेश मेहता, हरिनारायण व्यास,  रामनारायण उपाध्याय, राममूर्ति त्रिपाठी, मुकुट बिहारी 'सरोज', श्रीकांत जोशी, मालती जोशी, डॉ धनंजय वर्मा, हबीब तनवीर, मलय, प्रो. नईम, भगवत रावत, चंद्रकांत देवताले, मन्नू भंडारी, पुन्नी सिंह, सुदीप बनर्जी, विष्णु खरे, आग्नेय, स्वयं प्रकाश, प्रो. कांति कुमार जैन, डॉ प्रभात कुमार भट्टाचार्य, प्रेमशंकर रघुवंशी, डॉ विजय बहादुर सिंह, सुबोध कुमार श्रीवास्तव, डॉ रमाकांत श्रीवास्तव, डॉ ओम प्रभाकर, नरेश सक्सेना, दुर्गा प्रसाद झाला एवं ओम भारती को विभूषित किया जा चुका है.