नई दिल्लीः  'यदि होता किन्नर नरेश मैं राजमहल में रहता,सोने का सिंहासन होता  सिर पर मुकुट चमकता. बंदीजन गुण गाते रहते संध्या और सबेरेनिशिदिन नौबत बजती रहती दरवाजे पर मेरे…जैसी बेहद लोकप्रिय कविताएं लिखने वाले द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की पुण्यतिथि पर हिंदी जगत ने उन्हें बेहद शिद्दत से याद किया. ट्विटर पर उनके चाहने वालों ने पूरे दिन उनकी कविताएं ट्विट कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की. विवेक प्रताप सिंह ने उनकी यह कविता पोस्ट की, “जलाते चलो ये दिए स्नेह भर, कभी तो धरा का अंधेरा मिटेगा. बिना स्नेह विद्युत-दिये जल रहे जोबुझाओ इन्हें, यों न पथ मिल सकेगा.दिये और तूफान की यह कहानीचली आ रही और चलती रहेगी; रहेगा धरा पर दिया एक भी यदिकभी तो निशा को सबेरा मिलेगा.” रूपाभ की पोस्ट थी,” जो है मानव की शक्ति, वही मुझमें भी है. जो है मानव की दुर्बलता, वह भी मुझ में. जिसमें हो केवल शक्ति न हों दुर्बलताएँऐसा मानव देखा न अभी मैंने जग में. इसलिए भूल औ' कमजोरी जो कुछ भी होकर लेता निःसंकोच उसे स्वीकार हृदय.

आरती सिंह ने लिखा,” करो कवि, नव युग का निर्माण! नव श्वासों में आज भरो कवि, नवल स्फूर्ति, नव प्राण..“.हिंदी बाल साहित्य के नामी कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी का जन्म दिसंबर 1916 में आगरा जनपद में हुआ था. हिंदी के कवि और आलोचक डॉ ओम निश्चल, जिन्होंने माहेश्वरी जी पर दो किताबें लिखीं और संपादित की हैं, के अनुसार उनके पहले कविता संग्रह 'दीपक' का प्रकाशन 1949 में हुआ. पहला बालगीत संग्रह कातो और गाओ 1949 में प्रकाशित हुआ. इसके बाद लहरें, बढ़े चलो, बुद्धि बड़ी या बल, अपने काम से काम, माखन मिश्री, हाथी घोड़ा पालकी, सोने की कुल्हाड़ी, अंजन खंजन, सोच समझ कर दोस्ती करो, सूरज – सा चमकूँ मैं, हम सब सुमन एक उपवन के, सतरंगा फुल, प्यारे गुब्बारे, हाथी आता झूम के, बाल गीतायन, आई रेल आई रेल, सीढ़ी सीढ़ी चढ़ते हैं, हम हैं सूरज चाँद सितारे, जल्दी सोना जल्दी जगना, मेरा वंदन है, बगुला कुशल मछुआ, नीम और गिलहरी, चाँदी की डोरी, ना-मौसी-ना, चरखे और चूहे, धूप और धनुष, श्रम के सुमन, बाल रामायण, शेर भी डर गया चर्चित पुस्तकें हैं. वह उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से 1977 में बाल साहित्य का सर्वोच्च, 1992 में उन्हें पुनः उप्र हिंदी संस्थान लखनऊ द्वारा बाल साहित्य के क्षेत्र में सर्वोच्च पुरस्कार बाल साहित्य भारती से सम्मानित किया गया था.