मै अकेला ही चला था, जानिबे मंजिल मगर लोग आते गये और कारवां बनता गया'. इन पंक्तियों के लेखक, हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध गीतकार और प्रगतिशील आंदोलन के उर्दू के सबसे बड़े शायरों में शुमार मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म 1 अक्टूबर, 1919 उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के निजामाबाद में हुआ था, जहां उनके अब्बा पुलिस महकमे में तैनात थे. पर पुरखों की असल जमीन सुल्तानपुर में थी, सो सुल्तानपुरी तखल्लुस ताउम्र उनके साथ जुड़ा रहा. उनका असली नाम असरार उल हसन खान था. वालिद नहीं चाहते थे कि बेटा अंग्रेजी सीखे. इसलिए उन्हें मदरसे में भेज दिया गया. यहां उन्होंने अरबी और फारसी जबान सीखी. आलिम बनने के बाद वह लखनऊ पहुंचे और यूनानी चिकित्सा पद्धति सीखने. फिर एक दिन इस असफल हकीम की किस्मत ने करवट ली. वह सुल्तानपुर के एक मुशायरे में अपनी गजल सुना बैठे. लोगों की दाद उन्हें इतनी सच्ची और हौसलाबख्श लगी कि उन्होंने तय कर लिया कि बहुत हुआ नाड़ी जांचने का काम. उन्होंने मुशायरों में आमद बढ़ा दी. जिगर मुरादाबादी की शागिर्दी भी शुरू कर दी और पैसे की गरज से हिंदी फिल्मों में गीत लिखना स्वीकार लिया. पचास से ज्यादा सालों तक हिंदी फिल्मों के लिए करीब 4000 गीतों की रचना की.
नौशाद से लेकर अनु मलिक और जतिन ललित, एआर रहमान और लेस्ली लेविस तक के साथ उन्होंने काम किया. पंडित नेहरू की नीतियों के खिलाफ एक जोशीली कविता लिखने के कारण मजरूह सुल्तानपुरी को सवा साल जेल में भी रहना पड़ा. जेल में रहने के दौरान ही उनकी बड़ी बेटी हुई. परिवार पर आर्थिक संकट आ गया. तब राज कपूर ने मजरूह का लिखा ''एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल' खरीदा और परिवार को उस वक्त हजार रुपए दिए. फिल्म 'दोस्ती' के गाने 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे' के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला. उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. वह इस सम्मन से नवाजे जाने वाले पहले गीतकार थे. उन्हें ग़ालिब पुरस्कार और इकबाल सम्मान से भी मिले थे. उनके लिखे चर्चित गीतों में 'छोड़ दो आंचल ज़माना क्या कहेगा/ इन अदाओं का ज़माना भी है दीवाना/ दीवाना क्या कहेगा'; 'छलकाएं जाम आइए आपकी आंखों के नाम/ होंठों के नाम; 'लेके पहला पहला प्यार/ भरके आंखों मैं खुमार/ जादू नगरी से आया है कोई जादूगर जैसे लोकप्रिय गीत शामिल हैं.
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