वाराणसीः लीलाधर मंडलोई ऐसे चितेरे हैं कि उनके काव्य में शब्द तो जीवंत हो ही उठते थे, अब उनका कैमरा भी बोलता है. 6 सितंबर से 'देखा अदेखा' श्रृंखला के अंतर्गत मंडलोई के अमूर्त छायाचित्रों की एक प्रदर्शनी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भारत कला भवन में चल रही है, जिसका समापन 5 अक्तूबर को होना है. इस प्रदर्शनी के उद्घाटन अवसर पर साहित्यकार काशीनाथ सिंह ने सृजन की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था कि इन चित्रों में जीवन की प्रासंगिकता हैं. कवि से कलाकार, छायाकार की अपनी यात्रा को कला यात्रा का विस्तार बताते हुए लीलाधर मंडलोई ने कहा था कि इस प्रदर्शनी में 21 चित्रों की श्रृंखला है, जो प्रकृति के अमूर्त रूपाकारों पर आधारित हैं. छायांकन के पश्चात उसे विविध डिजिटल रंगों से चित्रित कर कैनवस पर उनके प्रिंट लिए गये हैं. यहां छाया और प्रकाश के सान्निध्य में नये-नये रूप उभरते हैं और परस्पर तथा दर्शक से संवाद स्थापित करते हैं.

याद रहे कि देखा-अदेखा प्रदर्शनी में बहुत से चित्र मुक्तिबोध के काव्य बिम्बों और ज्ञानात्मक संवेदना से प्रेरित हैं. इनके अवलोकन से कविता व कला के आपसी रिश्तों को भी समझा जा सकता है और यह भी कि कविता से रिश्ता एक कवि को किस तरह से अन्य कलाओं के प्रति प्रेरित करता है. रोज ही सैकड़ों छात्रों, पर्यटकों, साहित्य और कलाप्रेमियों को आकर्षित कर रही है. अब भोजपुरी अध्ययन केंद्र ने इस मौके का लाभ उठाते हुए राहुल सभागार में 4 अक्तूबर को अपराह्न 2 बजे से हिंदी के इस प्रतिष्ठित कवि और 'नया ज्ञानोदय' पत्रिका के संपादक लीलाधर मंडलोई के 'कविता पाठ सह परिचर्चा' का कार्यक्रम आयोजित किया है. हाल ही में उनका कविता संग्रह 'जलावतन' प्रकाशित हुआ है, जिसमें विस्थापन से जुड़ी कई अनूठी कविताएं हैं. इस अवसर पर वे "हमारे समय में कविता की जरूरत' विषय पर अपना वक्तव्य भी देंगे. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध कवि ज्ञानेंद्र पति करेंगे. शुभकामनाओं के साथ, मंडलोई जी की एक कविताः


खुदा खैर करे
वे जो नहीं हैं किसान
नहीं हैं मजूर
नहीं हैं इंजीनियर
नहीं हैं विद्यार्थी
नहीं हैं डॉक्टर
यहाँ तक इतिहासज्ञ, विधि विशेषज्ञ
भूगोलविद और अर्थशास्त्री

कुछ भी न होने के बावजूद
वे हीं हैं भारत के भाग्य विधाता
देखो! देखो!
विद्वानों के बनाये संविधान की
उड़ाते हुए धज्जियाँ उन्हें

वे लिख रहे हैं नया संविधान
खुदा खैर करे!
यह तो अमरीका का है
मेरे भारत के संविधान का क्या हुआ?