भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त, 1915 को रावलपिण्डी में एक सीधे-सादे मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था. स्वतंत्र व्यक्तित्व वाले भीष्म साहनी गहन मानवीय संवेदना के सशक्त हस्ताक्षर थे. उन्होंने भारत के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक यथार्थ का स्पष्ट चित्र अपने उपन्यासों में प्रस्तुत किया. उन्होंने 1935 में लाहौर के गवर्नमेंट कालेज से अंग्रेजी विषय में एमए की परीक्षा पास की और डॉ इन्द्रनाथ मदान के निर्देशन में 'कंसेप्ट ऑफ द हीरो इन द नॉवल' विषय पर शोधकार्य किया. पर अध्ययन के साथ लेखन जैसे उनके नस-नस में भरा था. कहते हैं उनकी पहली कहानी 'अबला' थी, जो इंटर कालेज की पत्रिका 'रावी' में, तो दूसरी कहानी 'नीली आंखे' अमृतराय के संपादकत्व में 'हंस' में छपी.
भीष्म साहनी ने 'झरोखे', 'कड़ियां', 'तमस', 'बसंती', 'मय्यादास की माड़ी', 'कुंतो', 'नीलू नीलिमा नीलोफर' नामक उपन्यासों के अतिरिक्त 'भाग्यरेखा', 'पटरियां', 'पहला पाठ', 'भटकती राख', 'वाड.चू', 'शोभायात्रा', 'निशाचर', 'पाली', 'प्रतिनिधि कहानियां' व 'मेरी प्रिय कहानियां' नामक दस कहानी संग्रहों का सृजन किया. उन्होंने नाटक भी लिखे, जिनमें 'हानूश', 'कबिरा खड़ा बाजार में', 'माधवी मुआवजे' प्रसिद्ध हैं. जीवनी साहित्य में उन्होंने 'मेरे भाई बलराज', 'अपनी बात', 'मेंरे साक्षात्कार' तथा बाल साहित्य के अन्तर्गत 'वापसी', 'गुलेल का खेल' का सृजन किया. अपनी मृत्यु के कुछ दिन पहले उन्होने 'आज के अतीत' नाम से अपनी आत्मकथा का प्रकाशन कराया. भीष्म साहनी की यथार्थवादी दृष्टि उनके प्रगतिशील व मार्क्सवादी विचारों का प्रतिफल थी. उन की सबसे बड़ी विशेषता थी कि उन्होंने जिस जीवन को जिया, जिन संघर्षो को झेला, उसी का यथावत् चित्र अपनी रचनाओं में अंकित किया. इसी कारण उनके लिए रचना कर्म और जीवन धर्म में अभेद था.
लेखन की सच्चाई को अपनी सच्चाई मानते थे. उनकी कई रचनाओं पर दूरदर्शन ने धारावाहिक बनाए, जिनकों चहुंओर सराहना मिली, इनमें भी 'तमस' सबसे ऊपर है. भीष्म साहनी के मन-मस्तिष्क में 'तमस' के लेखन बीज पड़वाने में उनके बड़े भाई बलराज साहनी का बड़ा योगदान था. एक बार जब भिवंडी में दंगे हुए तो भीष्म साहनी अपने बड़े भाई के साथ यहां गए थे. यहां जब उन्होंने उजड़े मकानों, तबाही और बर्बादी का मंजर देखा तो उन्हें 1947 के दंगाग्रस्त रावलपिंडी की याद आ गई. इसके बाद भीष्म साहनी जब दिल्ली लौटे, तो उन्होंने इन्हीं घटनाओं को आधार बनाकर 'तमस' लिखना शुरू किया. 'तमस' सिर्फ दंगे और कत्लेआम की कहानी नहीं बल्कि उस सांप्रदायिकता का रेशा-रेशा पकड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप ये घटनाएं घटती हैं. मानवीय मूल्य, नफरत, हिंसा, मजहबी उन्माद और सियासत, कुछ भी तो अछूता नहीं इससे. भीष्म साहनी को 1975 में तमस के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला. इसी साल उन्हें पंजाब सरकार ने शिरोमणि लेखक पुरस्कार से सम्मानित किया. इसके अलावा वह साल 1980 में एफ्रो-एशिया राइटर्स एसोसिएशन के लोटस अवॉर्ड और 1983 में सोवियत लैंड नेहरु अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. साल 1986 में पद्मभूषण अलंकरण से भी विभूषित होने वाले भीष्म साहनी 11 जुलाई, 2003 को इस संसार को अलविदा कह गए.
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