भोपालः भारत भवन के पांच दिवसीय 40वें वर्षगांठ समारोह की आखिरी प्रस्तुति वर्षों तक लोगों के दिलो दिमाग पर छाई रहेगी. पद्मश्री और राष्ट्रीय कालिदास सम्मान से विभूषित वामन केंद्रे द्वारा लिखित व निर्देशित नाटक 'मोहे पियाकी प्रस्तुति रंगपीठ मुंबई के कलाकारों ने दी. इसी के साथ इस बहु कला केंद्र के वर्षगांठ समारोह का समापन हो गया. संस्कृत शैली के इस नाटक में कलाकारों ने जंगल के दृश्य से लेकर धनुष चलाने तक की युद्ध कला को बिना किसी हथियार के आंगिक अभिनय के माध्यम से न केवल व्यक्त किया, बल्कि जीवंत कर दिया और दर्शक हतप्रभ देखते रहे. अगर  कलाकारों के कॉस्ट्यूम की बात करें, तो इसमें भीली परिवेश की छाप साफ नजर आई. ये परिधान बांस और रस्सी से तैयार किए गए थे. 'मोहे पिया' महाकवि भास के नाटक मध्यम व्यायोग का रूपांतरण है. यह भीम और घटोत्कच के पिता-पुत्र के रूप में पुनर्मिलन की कहानी है.
नाटक की शुरुआत में उपवास कर रही हिडिम्बा अपने पुत्र घटोत्कच को जंगल से एक मनुष्य लाने की आज्ञा देती है, ताकि उसे खाकर वह उपवास तोड़ सके. आज्ञा का पालन करते हुए घटोत्कच यात्रा कर रहे एक ब्राह्मण परिवार को रोक लेता है, जिसका दूसरा बेटा मध्यम अपने परिवार के लिए बलि चढ़ने को तैयार हो जाता है. आगे की कहानी कुछ इस तरह घटती है कि भीम भी वहां पहुंच जाते हैं और ब्राह्मण लड़के की जगह खुद साथ चलने की बात कहते हैं, मगर इस शर्त पर कि घटोत्कच उन्‍हें शक्ति परीक्षण में हरा दे. घटोत्कच इस चुनौती को स्वीकार करता है और विजयी होता है. जब भीम को हिडिम्बा के सामने ले जाया जाता है, तो वह उन्हें अपने पति के रूप में पहचान लेती है. अत: विश्वास दिलाने की बहुत कोशिशों के बाद घटोत्कच भी भीम को अपने पिता के रूप में स्वीकार कर लेता है. बाद में अपने पिता के आग्रह पर घटोत्कच महाभारत युद्ध में जाता है और लड़ाई करते हुए वीरगति को प्राप्‍त होता है. कलाकारों में ऋत्विक कंद्रे, सुहास सूर्यवंशी, रेणुका बोधणकर, अभिषेक अरोंदेकर, विशाल जाधव, अमोल जाधव, कार्तिकी ठाकुरदास, राजू शिंदे, मंदार पंडित, मंगेश शिंदे, स्वाप्निल कांबले, सुमित भालेराव, श्यामल रोकड़े, राघवेंद्र मणेरीकर, अमोल जाधव और शिवम नाहातकर शामिल थे.