पटनाभोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर के पुण्यतिथि के अवसर पर पटना के बिहार संग्रहालय में बिहारनामाकार्यक्रम का आयोजन किया गया। भोजपुरी नाट्य कला एवं साहित्य में भिखारी ठाकुर के योगदान पर चर्चा करना इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य था।  कार्यक्रम को कुल तीन हिस्सों में बांटा गया जिसमें बतकही’, ‘व्याख्यान’, ‘गायनका आयोजन क्रमशः किया गया। स्वागत वक्तव्य बिहार संगीत नाटक अकादमी के सचिव विनोद अनुपम ने किया। 'बतकही' में उद्घोषक ने विशिष्ठ अतिथियों से बातचीत की जिसका शीर्षक था भिखारी ठाकुर के रचनाओं में स्त्रियों का पक्ष एवं स्वर।अतिथियों में ऋषिकेश सुलभ और तैय्यब हुसैन शामिल थे। सुलभ जी ने भिखारी ठाकुर के जीवन पर  नाटक बटोही’  लिखा है।  तैयब हुसैन  भिखारी ठाकुर पर पी.एच. डी करने वाले पहले शोधार्थी हैं। वह भिखारी ठाकुर के व्यक्तित्व कृतियों के विविध पक्षों के जानकार एवं लेखक हैं।जब उद्घोषक ने हुसैन साहब से यह सवाल किया कि शोध से पहले वे भिखारी ठाकुर के विषय में क्या धरना रखते थे, उनका जवाब बेहद सरल रहा। उन्होंने कहा, “लोग आज भी उन्हें अलग अलग रूप में देखते हैं, कोई उनकी तुलना महान विद्यापति से करता है तो कोई उन्हें भोजपुरी नचऽनिया कह देता है। भोजपुरी में उनके योगदान को विश्व भूल नहीं सकतीइस क्रम में ठाकुर के दो महत्वपूर्ण रचनाओं, बिदेसिया और गबर घिचोर को याद किया गया।"

आयोजन के दूसरे अंश व्याख्यानमें डॉ. प्रवीण झा ने बिहार के संगीत परम्परा एवं भारतीय संगीत में उसके योगदान पर अपनी बातें रखीं। डॉ. प्रवीण झा, जो पेशे से चिकित्सक हैं नेबताया " कहीं न कहीं राग ध्रुपद, ख़याली एवं ठुमरी की उत्पत्ति बिहार से हीं हुई है। इसी कड़ी में वे यह भी कहते हैं कि कथक नृत्य का भी जन्म बिहार में ही हुआ। उन्होंने बताया कि कथक कथाशब्द से बना है और उन्हें यह पता चला है कि बिहार के कुछ गावों में आज भी खुदाई के दौरान मिट्टी एवं अन्य धातुओं के पैर घुँघरू मिलते हैं।उन्होंने यह स्पष्ट किया कि लोक संगीत पहले आया और शास्त्रीय संगीत बाद में। 

कार्यक्रम का अंत लोकगीत गायिका चंदन तिवारी के गायन के साथ हुआ। उन्होंने शुरुआत भिखारी ठाकुर की रचना चलनी के चालल दुलहा, सूप के फटकारल हे“, “छौ गज के साड़ी पेन्हलूसे किया जिसे सुन कर भावन में बैठे सभी श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए और भावन तालियों से गूंज पड़ा। इसके पश्च्यात चंदन ने रसूल मियाँ के गाने छोड़ दऽ गोरके के करलऽ खुसामि बलमाएकर किया ले करबऽ गुलामी बलमाको। इस लोक गीत में एक स्त्री अपने पति को अंग्रेजों की गुलामी न करने को कह रही है और उस दौर के स्याह सच को प्रत्यक्ष कर रही है। कार्यक्रम में पूरे बिहार से साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, भोजपुरी के कार्यकर्ता इकट्ठा थे। इस मौके पर राजन नेता शिवानन्द तिवारी, कथाकार नीरज सिंह, जीतेन्द्र कुमार, अरुण सिंह, विनीत राय, जयप्रकाश, सुमन सिंह, फ़ैयाज़, रविशंकर उपाध्याय,अमरनाथ, प्रत्युष मिश्रा, अरुण नारायण, श्रीकांत, अभय कुमार, निवेदिता झा, मोना झा, विभा सिन्हा, मधुबालाआशुतोष पांडे, असलम हसन आदि मौजूद थे।