नई दिल्लीः आज हमारे दौर के सर्वाधिक प्रतिष्ठित लेखकों में शुमार असग़र वजाहत का जन्मदिन है. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में 5 जुलाई, 1946 को हुआ था. उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, आख्यान, यात्रा संस्मरण, पत्र, निबंध, आलोचना जैसी विधा में खूब लिखा. वह उन विरले कहानीकारों में गिने जाते हैं, जिन्होंने पूरी तरह अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखते हुए भाषा और शिल्प के सार्थक प्रयोग किए.  उनकी आलोचना पुस्तक 'हिंदी-उर्दू की प्रगतिशील कविता' जहां इन दोनों भाषाओं के काव्य जगत का आख्यान है, वहीं पत्र 'इस पतझड़ में आना' भी खूब चर्चित रही. पर वजाहत को असली पहचान उनके नाटकों ने दी. उनके नाटकों का देश भर में मंचन और प्रदर्शन हुआ है. खासकर 'जिन लाहौर नईं वेख्या, ते जन्म्या नईं' ने देश की सरहद के बाहर भी खूब तारीफें बटोरीं. असगर वजाहत का पहला नाटक 'फिरंगी लौट आये' 1857 की पृष्ठभूमि पर आधारित था. आपातकाल के दौरान 'फरमान' नाम से इसे टेली प्ले के रूप में फिल्माया गया तथा इसके प्रसारण भी हुआ था.

उनकी कहानियां व उपन्यास भी कम नहीं. उनकी कहानियों की पृष्ठभूमि एक ओर आश्वस्त करती हैं कि कहानी की प्रेरणा और आधारशिला सामाजिकता भी हो सकती है, तो दूसरी ओर यह भी स्थापित करती हैं कि प्रतिबद्धता के साथ नवीनता, प्रयोगधर्मिता का मेल असंगत नहीं है. मास मीडियासे आक्रांत इस युग में असग़र वजाहत की कहानियां बड़ी जिम्मेदारी से नई स्पेशतलाश कर लेती हैं.राजनीति और मनोरंजन द्वारा मीडिया पर एकाधिकार स्थापित कर लेने वाले समय में असग़र की कहानियां व उपन्यास अपनी विशेष भाषा और शिल्प के कारण अधिक महत्त्वपूर्ण हैं. नकी प्रमुख रचनाओं में  उपन्यास सात आसमान, कैसी आगी लगाई, रात में जागने वाले, पहर-दोपहर, मन माटी, चहारदर, फिरंगी लौट आये, जिन्ना की आवाज, वीरगति, नाटकों में जित लाहौर नईं वेख्या के अलावा अकी, समिधा व नुक्कड़ नाटक सबसे सस्ता गोश्त तथा कथा-संग्रह में, मैं हिंदू हूँ, दिल्ली पहुँचना है, स्वीमिंग पूल, सब कहाँ कुछ ने खूब चर्चा बटोरी है. बुदापैस्त, हंगरी में इनकी दो एकल चित्र प्रदर्शनियां भी हो चुकी हैं.