नई दिल्लीः साहित्य अकादमी ने राजभाषा हिंदी सप्ताह के समापन समारोह का आयोजन किया, जिसमें प्रख्यात साहित्यकार सुरेश ऋतुपर्ण मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए. संस्कृति मंत्रालय के राजभाषा निदेशक आर रमेश आर्य विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थिति थे. कार्यक्रम के प्रारंभ में साहित्य अकादमी के सचिव एवं अध्यक्ष राजभाषा कार्यान्वयन समिति के श्रीनिवासराव ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि साहित्य अकादमी राजभाषा विभाग द्वारा निर्देशित सभी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सदैव तत्पर रहती है. उन्होंने अकादमी के उपस्थित कर्मचारियों से अनुरोध किया कि वे भी राजभाषा विभाग द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पाने के लिए सहयोग करें. समापन समारोह में अकादमी की राजभाषा पत्रिका आलोक के नए अंक का लोकार्पण किया गया. राजभाषा हिंदी सप्ताह के दौरान आयोजित अनुवाद प्रतियोगिता, निबंध प्रतियोगिता, यूनिकोड टंकण प्रतियोगिता एवं श्रुत लेखन प्रतियोगिता के विजेता प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया.
कार्यक्रम के अंत में अपना वक्तव्य देते हुए आर. रमेश आर्य ने कहा कि हिंदी सामाजिक संस्कृति को विकसित करने वाली भाषा है और हमें अपनी मातृभाषा, क्षेत्रीय भाषा के साथ ही राष्ट्रभाषा हिंदी को भी भारतीय संस्कृति के समन्वय सूत्र के रूप में सम्मान देना चाहिए और उसका अपने दैनिक कार्यों में अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए. सुरेश ऋतुपर्ण ने भाषा को अस्मिता से जोड़ते हुए कहा कि भाषा हमारे राष्ट्र का गौरव ही नहीं बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर की भी संवाहक होती है. उन्होंने मॉरीशस, फीजी, जापान, ट्रिनिनाड एवं टुबेको के अपने प्रवास की घटनाओं का उदाहरण देते हुए कहा कि भाषा अपने साथ संस्कृति भी ले जाती है और वहाँ के परिवेश में हमारी जड़े जमाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है. उन्होंने रोजमर्रा के जीवन में मातृभाषाओं के कम होते प्रयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इस तरह हम अपनी भाषा ही नहीं बल्कि विराट संस्कृति की भी उपेक्षा कर रहे हैं, जो उचित नहीं है. राजभाषा सप्ताह के दौरान पिछले 17 सितंबर को गीतकार एवं ग़ज़लकार हरेराम समीप, विज्ञान व्रत, कमलेश भट्ट कमल एवं बी.एल. गौड़ ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की थीं. राजभाषा सप्ताह का शुभारंभ प्रख्यात लेखिका मृदुला गर्ग ने 14 सितंबर को किया था.