पटना: दैनिक जागरण के सहयोग से आयोजित पटना लिटरेचर फेस्टिलल में बेगम अख्तर की गायकी पर एक बेहतरीन सत्र का संयोजन हुआ। सत्र का विषय था ' बेगम अख्तर सदियों से सदियों तक ' । इस सत्र में प्रतिभागी थे बेगम अख्तर पर किताब लिखनेवाले यतीन्द्र मिश्र और थिएटर से जुड़ीं वाणी त्रिपाठी और प्रशासनिक अधिकारी त्रिपुरारी शरण।

चर्चा की शुरुआत करते हुए यतीन्द्र मिश्र  ने कहा कि " बेगम अख्तर का व्यक्तित्व  तीन चार घरानों से मिलकर बनता है। 1974 में जब नवाब पटौदी ने गाने का आग्रह  किया और वहीं गाते समय उनकी मौत हुई। बेगम अख्तर को  दो  तरह से देखना चाहिए एक शादी के पहले दूसरा शादी के बाद।  शादी के बाद  उनके पति ने गाने पर पाबंदी लगा  दी  थी कि गाना-वाना तवायफों का काम है, अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता था।  उनके  वकील पति जब प्रैक्टिस करने चले चले जाते थे तब वो  चुपचाप  हारमोनियम निकाल कर गाती थी। उनकी आवाज में तड़प जो है वो उनको गाने न देने और पाबंदी थी उसका परिणाम है। लखनउ में हजरत गंज में  कुलीन लोगों के इलाके में  अपना कोठा ले आती हैं। बड़े बड़े नवाबजादों को वहां प्रवेश नहीं मिलता था। बेगम अख्तर  अपने लिये ज़हनियत  तैयार करती थीं। उनमें अजीब किस्म की नफ़ासत थी।

वाणी  त्रिपाठी ने बात को आगे बढाते हुए कहाबेगम साहिबा की जो  अपनी यात्रा रही उसमें पहले बंदिशें मैखिक  परंपरा से आती थीं।  उन्हें लिखा नहीं जाता था साजिंदों आदि के माध्यम से याद रखा जाता है।  उनकी   फ़िल्म थी 'नसीब का चक्कर', जवानी का नशा, नल दमयंती आदि। उनको कैमरे से प्रेम था। वे बहुत खूबसूरत ख़्वातीन थी। कनॉट प्लेस में लोग उनको सुनने आते हैं।  बेगम अख्तर की कई बंदिशों को फिल्मों में इस्तेमाल किया जाता है। ' कोयलिया मत कर पुकार, करेजवा करेला कटार'। एक मशहूर बंदिश है ' आ जा सांवरिया तोहे  गरवा लगा लूं, रास के भरे तोरे नैन'। बेनेगल साहब ने भी एक फ़िल्म बनाई है। बेगम अख्तर जैसी मल्लिका-ए-तरन्नुम को फिल्मों की दरकार नहीं  थी। बेगम अख्तर  जो रोज गाती -बजाती थी उनको जैसे पिंजड़े में बंद कर दिया।  ये उनके जीवन का बहुत बड़ा संत्रास है। एक डॉक्टर ने उनके  पति को कहा कि यदि उनको ज़िंदा देखना चाहते हैं तो इन्हें गाने दें। वो  संगीत के सभी रूपों में गाती थी लेकिन सिखाती  मात्र दो थीं।"

त्रिपुरारी शरण ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए जोडा़ कि " ख्याति की निरंतरता, आवाज  की  अनन्तता को ध्यान में रखें तो कह सकते हैं कि वो हमारी राष्ट्रीय जीवन की प्रख्यात शख्सियत है उसका राज क्या है? यह  महत्वपूर्ण नहीं है कि उन्होंने क्या गाया? बल्कि  गानों का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। बेगम अख्तर की गायकी की लोकप्रियता प्राप्त कराने की वजह थी भारत- पाकिस्तान के विभाजन और उसके बाद की दरारों को पाटने का काम। उनकी गायकी में भावानात्मक जुड़ाव, स्मृतियां सब मुखरता से आती हैं।