नई दिल्लीः साहित्य अकादमी ने इस बार साहित्य मंच के अंतर्गत साहित्यिक और भाषाई दृष्टि से समृद्ध पड़ोसी देश चीन को प्रमुखता दी और ‘भारत-चीन साहित्यिक आदान-प्रदान: बहुभाषिक चुनातियां‘ विषय पर परिचर्चा और विचार-विमर्श कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें दोनों ही देशों के भाषाविद, साहित्यकार, लेखक और विद्वानों ने शिरकत की. यह कार्यक्रम अकादमी ने रवींद्र भवन के अपने सभाकक्ष में ही रखा था. अकादमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने अतिथि वक्ताओं का औपचारिक स्वागत करते हुए एक तरह से विषय प्रस्तावित किया और कहा कि यह खुशी की बात है कि भारत-चीन के प्राचीन सांस्कृतिक संबंधों को आगे बढ़ाते हुए साहित्य अकादमी और चीन के बीच सांस्कृतिक विनिमय के ऐसे कार्यक्रम पिछले तीन दशक से निरंतर संचालित किए जा रहे हैं.
चीनी लेखक संघ के अंतर्राष्ट्रीय संपर्क विभाग के हू वेई ने राव की बातों का समर्थन करते हुए भारत-चीन की पारस्परिक समानताओं का उल्लेख किया. इन दोनों ने ही फाहियान की भारत यात्रा और यहां की शिक्षा, साहित्य, संस्कृति को लेकर उनके उल्लेख का जिक्र किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए चीनी लेखक संघ के उपाध्यक्ष जीडी माडिया ने साहित्य अकादमी की सराहना करते हुए दोनों देशों के दीर्घ सांस्कृतिक संबंधों के आदान-प्रदान की पृष्ठभूमि को रेखांकित करते हुए साहित्य अकादमी का आभार व्यक्त किया और कहा कि ऐसे सम्मिलन से दोनों देशों के सांस्कृतिक और साहित्यिक परंपराओं के साथ ही हमें वर्तमान मौजूदा प्रक्रियाओं को समझने में मदद मिलती है. उनका जोर था कि भूमंडलीकरण के इस दौर में अपनी अस्मिताओं को पहचानना और उनकी रक्षा करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है, ऐसे में इस तरह के आयोजनों से इन विसंगतियों को दूर करने के रास्ते निकल सकते हैं. कार्यक्रम में भारत चीन के महत्त्वपूर्ण आलोचकों, लेखकों की भागीदारी रही. चीन के ली जियाओमिंग, झांग किंघुआ, ली याकिंग, झांग रुइफेंग तथा भारत की ओर से चर्चित कवयित्री अनामिका, एच एस शिवप्रकाश, हरीश त्रिवेदी और चंद्र मोहन ने अपने आलेख प्रस्तुत किए. चीनी दूतावास के सांस्कृतिक सलाहकार और साहित्य अकादमी के सचिव ने उपस्थित सहभागियों और साहित्यप्रेमियों का आभार प्रकट किया.
कार्यक्रम की सफलता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि इसमें हिंदी के अलावा दूसरी भारतीय भाषाओं के लेखक, जिनमें विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव और ओड़िया लेखक अमरेंद्र खटुआ और पारमिता सत्पथी जैसे नाम भी शामिल हैं, बतौर श्रोता उपस्थित रहे. अकादमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने ऐसे आयोजनों पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि चाहे विदेशी साहित्यकार प्रतिनिधिमंडल में आएं या वैयक्तिक तौर पर अकादमी के आयोजनों में हमारे साहित्यकारों की शिरकर हमेशा उन्हें चौंकाती है. इसीलिए अकादमी समय-समय पर ऐसे आयोजन करती ही रहती है. चीन से पहले हमने इजराइल के साथ ऐसा कार्य्क्रम किया था. चीन और इजराइल दोनों ही बार प्रतिनिधिमंडल स्तर का संवाद आयोजित हुआ, जिसमें दोनों ही देशों के कई लेखकों साहित्यकारों ने शिरकत की. इसके अलावा जब भी किसी देश का कोई बड़ा लेखक, साहित्यकार आता है, और आग्रह करता है या हमें पता चलता है, अकादमी ‘साहित्य मंच‘ की ओर से उसे आमंत्रित करती है. इससे हमारे देश के साथ संबंधित देशों के साहित्यकारों को भी एक-दूसरे के नए लेखन, संस्कृति और वर्त्मान प्रक्रियाओं को समझने में मदद मिलती है.