जागरण संवाददाता, नई दिल्ली: अमेरिका में अन्य किसी भी देश में हिंदी का महत्व उतना ही होगा जितना कि भारत का होगा। जैसे जैसे भारत का महत्व बढ़ेगा तो हिंदी का भी महत्व बढ़ेगा। मैं पिछले तीस वर्ष से अमेरिका में रह रहा हूं। मेरा अनुभव है कि पिछले एक दशक से इस देश के लिए भारत का महत्व बढ़ा है। परिणाम यह हुआ है कि हिंदी का भी महत्व बढ़ा। कई बड़ी तकनीकी कंपनियों के प्रमुख भारतीय हैं, उस वजह से भी हिंदी और भारतीय भाषाओं की अहमियत बढ़ी है। ये कहना है अमेरिका में कंप्यूटर सलाहकार के तौर पर कार्यरत हिंदी सेवी और कवि अनूप भार्गव का, जो दैनिक जागरण के ‘हिंदी हैं हम’ के मंच पर अपनी बात रख रहे थे। अनूप भार्गव ने अपनी बात को पुष्ट करने के लिए एक उदाहरण भी दिया। उन्होंने कहा कि इन दिनों अमेरिका में बनने वाले टीवी सीरियल में भी भारतीय चरित्र आने लगे हैं। सीरियल की कहानियां इस तरह से लिखी जा रही हैं कि उसमें भारतीय चरित्र होते हैं। सिनेमाहाल में नियमित हिंदी फिल्में दिखाई जाती हैं। ये बदलाव धीरे धीरे आ रहा है लेकिन महत्वपूर्ण है। इसको हम सीधे सीधे भारत के बढ़ते प्रभाव से जोड़कर देख सकते हैं।
अनूप भार्गव का मानना है कि एक विदेशी को दूसरे देश की भाषा में तभी रुचि होगी जब उसका हित सध रहा होगा। अगर किसी अमेरिकी कंपनी को भारत में कुछ बेचना है तो उसके लिए हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं का महत्व बढ़ जाएगा। इसलिए विदेश में हिंदी की स्थिति भारत की आर्थिक प्रगति पर भी निर्भर करेगी। उन्होंने कहा कि पिछले कई वर्षों में भारत एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा है तो विदेशियों के भारतीयों को, उसकी भाषा और संस्कृति को देखने का नजरिया बदल गया है। उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि प्रधानमंत्री या अन्य मंत्री विदेश जाकर हिंदी में बात करते हैं तो उसका असर गहरा होता है। पहले ये होता था कि भारत से आनेवाले ज्यादातर मंत्री या प्रधानमंत्री अंग्रेजी में ही बात करते थे। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके मंत्री जब अमेरिका आते हैं तो हिंदी में बातचीत करते हैं। इससे भी हिंदी को लेकर विदेशियों के बीच उत्सुकता का वातावरण बनता है।  
अमेरिका में हिंदी की स्थिति पर भी अनूप भार्गव ने अपने विचार रखे। उनका कहना था कि जब वो 1980 के दशक में अमेरिका आए थे उनकी उम्र 28 साल थी और वो अपनी जिंदगी का एक लंबा हिस्सा भारत में बिता चुके थे। उनके व्यक्तित्व का निर्माण हो चुका था। उनकी तरह के सैकड़ों लोग उस समय भारत से अमेरिका आए। वो सब लोग अब भी हिंदी से प्यार करते हैं। हिंदी से जुड़े हुए हैं। उनका मौलिक चिंतन भी हिंदी में होता है। उनका मानना है कि इस पीढ़ी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने बच्चों को हिंदी से जोड़कर रखना है। विदेश में रहनेवाले भारतीय अपनी जड़ों की तलाश में रहते हैं। उनकी जड़ें तो भारत में हैं। अपनी जड़ों से जुड़ने का एक माध्यम भाषा है। इसलिए कई परिवारों में हिंदी में ही बातचीत की जाती है ताकि बच्चे भारत जाएं तो अपने दादा दादी या नाना नानी से उनकी भाषा में बात कर सकें।
अनूप भार्गव का ये भी मानना है कि इंटरनेट के माध्यम से भाषा का विस्तार संभव है। इंटरनेट ने पूरी दुनिया को बहुत छोटा कर दिया गया है। अब एक दूसरे से जुड़ना आसान है। उन्होंने बताया कि जब वो अमेरिका आए थे तो उन्होंने ई कविता के माध्यम से दुनिया भर के हिंदी प्रेमियों को जोड़ा था। इसके अलावा उन्होंने कविता कोश बनाने में भी अहम भूमिका निभाई। इन दिनों हिंदी से प्यार है के नाम से इंटरनेट पर एक कार्यक्रम चला रहे हैं। उनका मानना है हिंदी को मजबूत करने में सिर्फ विद्वान ही योगदान नहीं कर सकते हैं बल्कि आम हिंदी भाषी भी इसमें अपना योगदान कर सकता है। कुछ न कुछ कौशल हर व्यक्ति के अंदर होता है जिससे वो अपनी भाषा को लाभ पहुंचा सकता है। जरूरत इस बात की है कि उस कौशल को भाषा से जोड़ दिया जाए।
उल्लेखनीय है कि ‘हिंदी है हम’ दैनिक जागरण का अपनी भाषा हिंदी को समृद्ध करने का एक उपक्रम है। इसके अंतर्गत हिंदी के संवर्धन के लिए कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं। विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर एक सप्ताह तक दुनिया के अलग अलग देशों के हिंदी सेवियों और हिंदी शिक्षकों और राजनयिकों से बातचीत का आयोजन किया गया है। अनूप भार्गव से ये बातचीत उसी कड़ी में की गई थी।