नई दिल्लीः आधुनिक हिंदी के पितामह कहे जाने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र की आज जयंती है. उन्होंने अपनी अल्पायु में ही इतने बहुविध काम किए कि हिंदी साहित्य में एक समूचा युग उनके नाम से जाना जाता है. वह केवल भाषा ही नहीं ऐसा साहित्य भी गढ़ रहे थे, जिसके माध्यम से हिंदी में नवजागरण का शंखनाद हुआ. उनकी मेधा अद्भुत थी. वह जब केवल पांच साल के थे, तब उन्होंने अपना पहला दोहा लिखा था, जो यों था. 'लै ब्यौड़ा ठाड़े भये, श्री अनिरुद्ध सुजान. बाणासुर की सैन्य को, हनन लगे भगवान्.' भारतेंदु हरिश्चंद्र केवल 34 साल जिंदा रहे. वह 9 सितंबर, 1850 को वाराणसी में पैदा हुए और 6 जनवरी, 1885 को उनका निधन हो गया. पर इस समयावधि में भी उन्होंने हिंदी को वहां स्थापित कर दिया, जहां उसे होना चाहिए. भारत की भाषा, राज भाषा, राष्ट्रभाषा, खड़ी बोली, देवनागरी और अपनी हिंदी जब बालिका के रूप में घुटनों के बल चलना सीख रही थी, तब भारतेंदु ने उसे अपनी अंगुली से थाम एक नया स्वरूप दे दिया. उनके काल में देश में हिंदी साहित्य का सर्वदा अभाव था. हिंदी के साहित्य व पत्र-पत्रिकाओं में अरबी-फारसी शब्दों की भरमार थी. उर्दू के शब्द ज्यादा प्रयोग होते थे. गद्य साहित्य का लगभग अकाल था, तो काव्य साहित्य में भी भक्ति तथा श्रृंगार रस की भरमार थी और अवधी, ब्रज आदि की पुराने चाल की रचनाएं हो रही थी. भारतेंदु ने अपनी ललित लेखनी से हिंदी को संकरी गलियों से निकाल कर प्रगति के विशाल राजपथ पर ला खड़ा किया.

भारतेंदु हरिश्चंद्रने अनेक विषयों पर लेखनी चलाकर जनता के लिए उपयोगी ग्रंथों की रचना की. इस रचना प्रक्रिया में उन्होंने काव्य भाषा का संस्कार किया और गद्य की भाषा के स्वरूप को निर्धारित किया. भाषा का निखरा रूप भारतेंदु की कला के साथ प्रकट हुआ. सुमित्रानंदन पंत ने लिखा था, “भारतेन्दु कर गये, भारती की वीणा निर्माण. किया अमर स्पर्शों में, जिसका बहु विधि स्वर संधान.भारतेंदु ने हर तरह की रचना की. एक तरफ भक्ति प्रधान एवं श्रृंगारयुक्त रचना तो दूसरी तरफ देश के प्रति निष्ठा और सामाजिक समस्याओं के उन्मूलन की बात भी की. उनकी भक्ति प्रधान रचनाएं घनानंद एवं रसखान की रचनाओं की कोटि की हैं. उन्होंने संयोग की अपेक्षा वियोग पर विशेष बल दिया. वे स्वतंत्रता प्रेमी एवं प्रगतिशील विचारक व लेखक थे. हिंदी साहित्य की साधना में उन्होंने केवल अपना ज्ञान व समय ही नहीं बल्कि धन भी पानी की तरह बहाया और हमारे हिंदी साहित्य और भाषा को समृद्ध किया. हिंदी भाषा और साहित्य पर भारतेंदु का प्रभाव अक्षुण्य है. ऐसा प्रभाव पड़ा कि वे आधुनिक बोली के जन्मदाता भी माने जाते हैं. साहित्य के हर क्षेत्र में भारतेंदु ने काम किया. कविता, नाटक, निबंध, व्याख्यान, दोहा, चौपाई, छन्द, बरवै, हरिगीतिका, कवित्त एवं सवैया सहित हिंदी की कई विधाओं में उन्होंने बहुविध काम किया. यह यों ही नहीं है कि एक कवि, लेखक, नाटककार, साहित्यकार एवं सम्पादक के रूप में उनके योगदान को हिंदी जगत में अब भी अमूल्य समझा जाता है. उस अल्पायु में भी भारतेंदु ने 72 ग्रंथों की रचना की.