नई दिल्लीः फिजी गणराज्य के स्थानीय दूतावास में राजदूत योगेश पुंजा ने भारतीय मूल की युवा कवयित्री श्वेता दत्त चौधरी के कविता संग्रह 'यह भी मेरे देश की माटी..वह भी मेरे देश की माटी' का लोकार्पण कार्यक्रम आयोजित किया. फिजी के दयानंद एंग्लो वैदिक गर्ल्स कॉलेज में पढ़ाने वालीं श्वेता दत्त चौधरी फिज़ी गणराज्य की युवा कवियत्री हैं. वह पहले भी भारत आ चुकी हैं, और यहां की माटी से उनका एक अनूठा नाता है. उनकी कविताएं दोनों देशों के प्रेम को तो दर्शाती ही हैं, इनके रीति-रिवाजों और संस्कृति को सहेज कर मन को भीतर तक छू लेने वाली हैं. उनकी कविताओं से गिरमिटिया देशों के युवाओं के मन में झांकने का अवसर मिलता है, जिसमें इन सबके मनआंगन में अपने पूर्वजों को माटी के प्रति सम्मान और प्रेम स्पष्ट दिखाई देता है. इस कार्यक्रम में उपस्थित गणमान्य अतिथियों में मंगोलिया के राजदूत, डॉ पद्मजा जी, विजय जॉली, संदीप मारवाह, नरेश शांडिल्य, देशराज , शरत चंद्र अग्रवाल, डॉ वेद व्यथित, सुधाकर पाठक, प्रकाशक डॉ अरुण कुमार सिंह सहित कई राष्ट्रों के राजनयिक उपस्थित थे.
श्वेता दत्त चौधरी पहली बार कुछ साल पहले अपनी मां के साथ भारत में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में भाग लेने आई थीं, तब उन्होंने कहा था, 'बचपन से हमने महाभारत, रामायण और गीता सुनी है. मेरी मां अकसर भारत में स्थित इन तीर्थ स्थलों को देखने की इच्छा जाहिर करती थीं, लेकिन हम लोगों के पास इतने पैसे नहीं हैं कि भारत आकर हर जगह घूम सकें.  विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन की जानकारी फिजी के शिक्षा मंत्रालय से मिली थी. हमने इसमें हिस्सा लेने के लिए गुजारिश की. पैसे ज्यादा नहीं थे, तो फिजी के शिक्षा विभाग ने भी हमारी मदद की. कुछ पैसा बचत का निकाला, कुछ शिक्षा मंत्रालय ने दिया और कुछ पैसा उधार मांग कर मां को साथ लेकर भारत आ गए. उनकी मां शीलावती दत्त ने तब कहा था, 'हम तो भारत की यात्रा करने का सोच भी नहीं सकते थे.फिजी के 30 डॉलर के बराबर भारत का एक रुपया होता है. 15 दिनों की भारत यात्रा में खर्च लायक पैसे हमारे पास नहीं थे, लेकिन जब सम्मेलन में आने के लिए सरकार से मदद मिली, तो सोचा इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता, इसलिए थोड़े पैसे उधार लेकर भी आ गए.' उस यात्रा के बाद आज श्वेता दत्त चौधरी के लिए भारत की माटी भी उतनी ही अपनी है जितनी फिजी की. यह उनकी कविताओं से भी जाहिर होता है.