भोपालः म. प्र. हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा 'भारतीय भाषाओं से हिंदी में अनुवाद की आवश्यकता और चुनौतियां' विषय पर दो दिवसीय अनुवाद विमर्श कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम का उद्देश्य अनुवाद को एक महत्त्वपूर्ण और आवश्यक विधा मानते हुए उसकी प्रतिष्ठा की पुनर्स्थापना पर विमर्श करना था कि यह विधा न केवल नव सृजन की तरह महत्त्वपूर्ण है बल्कि भाषाई एकता के साथ ही शाब्दिक, सांस्कृतिक व सामाजिक एकता में योगदान करती है. बहुरंगी सांस्कृतिक विविधता वाले देश में विविध भाषाओं से कविता के स्वर को हिंदी में और हिंदी के महत्त्वपूर्ण रचनाकर्म को विविध भाषाओं में जानना सुखद ही नहीं ज़रूरी भी है, इस लिहाज़ से अनुवाद का कार्य अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है. समापन उद्बोधन में सम्मेलन के अध्यक्ष पलाश सुरजन द्वारा अनुवाद को मूल रचनाकर्म से कमतर मानने की मानसिकता में परिवर्तन की आवश्यकता को रेखांकित किया गया. प्रथम सत्र में देश के विभिन्न स्थानों से पधारे प्रतिभागी, अनुवादक एवं लेखकों में कुलजीत सिंह, अनवारे इस्लाम, सुभाष नीरव, रश्मि रमानी, मीता दास, संध्या कुलकर्णी, अशोक मनवानी, सुनीता डागा, उत्पल बनर्जी, सारिका ठाकुर, संतोष एलेक्स, डॉ बलवंत जेउरकर, डॉ मालिनी गौतम, भरत यादव आदि उपस्थित थे.
इस सत्र के वक्ताओं ने अनुवाद पर विमर्श के तहत विविध भारतीय भाषाओं की आपसी आवा-जाही,मअनुवाद की आवश्यकता, सीमाओं तथा चुनौतियों पर गहन चर्चा की. सत्र का संचालन वरिष्ठ कवि एवं अनुवादक मणि मोहन मेहता ने किया गया. द्वितीय सत्र में मणि मोहन के कविता संकलन 'भेड़ियों ने कहा शुभरात्रि' के मराठी अनुवाद 'बीजाची प्रार्थना' का लोकार्पण किया गया. इस अवसर पर अनुवादक भरत यादव एवं लोकायत प्रकाशन के राकेश सालुंके भी उपस्थित थे. इस सत्र में प्रतिभागी अनुवादकों एवं रचनाकारो द्वारा अपनी अनूदित रचनाओं का पाठ किया गया. सत्र का संचालन कन्नड अनुवादक एवं कवि संध्या कुलकर्णी ने किया. कार्यक्रम के समापन में सम्मेलन परिवार की ओर से अरुण पाठक और रक्षा दुबे ने सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया. लक्ष्य जन कल्याण समिति गंज बासौदा की श्रीमती जागेश, मुकेश एवं कीर्ति खन्ना ने सभी अतिथियो को शाल प्रदान कर अभिनन्दन किया. हिंदी साहित्य सम्मेलन ने नवाचार करते हुए पुष्पगुच्छ के स्थान पर अभ्यागतो का अभिनंदन मणि मोहन मेहता की 'भेड़ियों ने कहा शुभरात्रि' एवं सोनल शर्मा की 'कोशिशों की डायरी' भेंट कर किया.