नई दिल्लीः प्रेम भारद्वाज के संपादन में साहित्य और कला–संस्कृति को समर्पित पत्रिका भवन्ति का लोकार्पण ‘हिन्दी भवन‘ के सभागार में हुआ. आयोजकों ने कवि पंकज सिंह की वॉल के बहाने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के इन पंक्तियों पर जोर दिया कि ‘जब– जब इस देश की राजनीति के कदम लड़खड़ाएंगे, हमारा साहित्य उसे गिरने से बचाता रहेगा.‘ पत्रिका के प्रकाशकों का मानना है कि साहित्य की सार्थकता तब तक सलामत रहेगी, जब भी कहीं जनतंत्र और साहित्य के संबंधों की पड़ताल की जाएगी.
भवन्ति के प्रकाशन पर इनका तर्क है कि ऐसे समय में जब संस्कृति को किसी विशेष नस्ल की उपज बताने की होड़ –सी लगी हो और उस होड़ में– ‘तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो/ आदमी के पक्ष में हो या कि आदमखोर हो‘ जैसे सवाल समाज में हलचल पैदा करते हैं और साहित्यकारों का सत्ता से गलबाहीं डाले झूमना अखरता है, तब मौजूदा व्यवस्था में प्रतिरोधी स्वर को भी शामिल कर एक पत्रिका का प्रकाशन हुआ है.
भवन्ति का लोकार्पण समारोह ऐसे ही तमाम विचारों से लबरेज रहा. इस मौके पर जनतंत्र और साहित्य पर काफी बातें हुईं. जनतंत्र मंच पर भी दिखा, जहाँ अलग–अलग विचार धारा के लोग साथ बैठे और अपनी बातें रखीं. वक्ता थे– निर्मला जैन, अशोक वाजपेयी, रामबहादुर राय, संजीव और अल्पना मिश्र. संचालन निखिल आनंद गिरि ने किया. श्रोताओं में रामशरण जोशी, मैत्रेयी पुष्पा, प्रेमपाल शर्मा, दिविक रमेश, प्रियदर्शन, राकेश रेणु विमल कुमार, भारत भारद्वाज, बलराम, राजकमल, राहुल सिंह, प्रांजल धर, प्रवीण कुमार, कुमार मंगलम, रूपा सिंह, पंकज चौधरी, आकांक्षा पारे, सोनाली मिश्र,अनुज, अवनीश मिश्र, रोहित प्रकाश ,संजीव सिन्हा, कमलेश जैन,राजेश राव, संदीप तोमर, अशोक प्रियदर्शी, नवीन नीरज, अरुण पांडेय, अंजना गौतम आदि प्रमुख थे.