नई दिल्लीः युवा पत्रकार और कला समीक्षक अरविंद दास की पुस्तक 'बेखुदी में सोया शहर: एक पत्रकार के नोट्स' का लोकार्पण एवं पुस्तक परिचर्चा का आयोजन इंडिया इंटर नेशनल सेंटर में हुआ, जिसमें प्रख्यात पत्रकार करण थापर, प्रोफेसर वीर भारत तलवार, संपादक-पत्रकार ओम थानवी और लेखक प्रभात रंजन शामिल हुए. समारोह में उपस्थित वक्ताओं का कहना था कि इस किताब का गद्य जितना कवित्वपूर्ण, सरस और प्रवाहमय है, विषय वस्तु का चुनाव उससे बिल्कुल कम नहीं. कुछ लोगों की टिप्पणी थी कि अरविंद दास का भाषिक गद्य बार – बार गोबिंद प्रसाद की किताब 'आलाप और अंतरंग' तथा 'ख्वाब है दीवाने का' जैसी किताबों की याद दिलाता है.
'बेखुदी में सोया शहर: एक पत्रकार के नोट्स' लेखक के लेख-टिप्पणी-ब्लॉग का संग्रह है. देश-विदेश की घुमक्कड़ी, समकालीन मीडिया, संस्कृति और राजनीति के बारे में लेखक ने अपने अनुभव को आत्मीय अंदाज और सहज भाषा में लिखा है. इसमें एक पत्रकार और शोधार्थी का अनुभव घुला-मिला है. किताब में अरविंद दास के फील्ड नोट्स को पांच खंडों में बांटा गया है- परदेश में बारिश, राष्ट्र सारा देखता है, संस्कृति के अपरूप रंग, उम्मीद-ए-सहर और स्मृतियों का कोलाज. पहले खंड में अरविंद ने उन स्मृतियों, हलचलों को शब्द दिया है जो उन्होंने परदेश में महसूस किया. उनकी यह किताब परदेश की नदियों सेन, नेकर, टेम्स के करीब ले जाती है. नदी की बात करते हुए लेखक बहुत सहज हो जाते हैं. दिल्ली की यमुना से लेकर वे अपने अंचल की कमला-बलान तक का जिक्र करते हैं. वक्ताओं का मत था कि अरविंद दास ने अपने अनुभव को अच्छे से संजोया है. कुल मिलाकर जीवन के अलग अलग रंग के फील्ड नोट्स को एक किताब में पढ़ना रोचक अनुभव है. याद रहे कि  अरविंद दास की पहली पुस्तक 'हिंदी में खबर' थी.