नई दिल्लीः लॉकडाउन की इन विकट परिस्थितियों में भी अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संघ ने जब बुद्ध पूर्णिमा दिवस समारोह का आयोजन किया, तो दुनिया भर से लाखों लोग एक साथ जुड़े जरूर लेकिन ऑनलाइन. इस अवसर पर आयोजकों ने प्रधानमंत्री मोदी को भी वर्चुअल माध्यम से संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया जहां वह लुम्बिनी, बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर के अलावा श्रीलंका के श्री अनुराधापुर स्तूप और वास्कडुवा मंदिर के समूहों से एक साथ मुखातिब हुए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर अपने वीडियो संदेश से भारतीय संस्कृति को मजबूती देने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि प्रत्येक जीवन की मुश्किल को दूर करने के संदेश और संकल्प ने भारत की सभ्यता को, संस्कृति को हमेशा दिशा दिखाई है. भगवान बुद्ध ने भारत की इस संस्कृति और इस महान परम्परा को बहुत समृद्ध किया है. वो अपना दीपक स्वयं बनें और अपनी जीवन यात्रा से, दूसरों के जीवन को भी प्रकाशित करते रहे.
प्रधानमंत्री का कहना था कि बुद्ध, त्याग और तपस्या की सीमा है. बुद्ध, सेवा और समर्पण का पर्याय हैं. बुद्ध, मज़बूत इच्छाशक्ति से सामाजिक परिवर्तन की पराकाष्ठा हैं. बुद्ध, वो है जो स्वयं को तपाकर, स्वयं को खपाकर, खुद को न्योछावर करके, पूरी दुनिया में आनंद फैलाने के लिए समर्पित है. ऐसे समय में जब दुनिया में उथल-पुथल है, कई बार दुःख-निराशा-हताशा का भाव बहुत ज्यादा दिखता है, तब भगवान बुद्ध की सीख और भी प्रासंगिक हो जाती है. वो कहते थे कि मानव को निरंतर ये प्रयास करना चाहिए कि वो कठिन स्थितियों पर विजय प्राप्त करे, उनसे बाहर निकले. भगवान बुद्ध के बताए 4 सत्य यानी दया, करुणा, सुख-दुख के प्रति समभाव और जो जैसा है उसको उसी रूप में स्वीकारना, ये सत्य निरंतर भारत भूमि की प्रेरणा बने हुए हैं. भगवान बुद्ध का एक-एक वचन, एक-एक उपदेश मानवता की सेवा में भारत की प्रतिबद्धता को मजबूत करता है. बुद्ध भारत के बोध और भारत के आत्मबोध, दोनों का प्रतीक हैं. प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर
सुप्प बुद्धं पबुज्झन्ति,
सदा गोतम सावका
अर्थात जो दिन-रात, हर समय मानवता की सेवा में जुटे रहते हैं, वही बुद्ध के सच्चे अनुयायी हैं, कहकर कोरोना काल में जो लोग आमजनों की सेवा में जुटे हैं उनका संकल्प भी बढ़ाया. जाहिर है प्रधानमंत्री जहां भी अवसर मिल रहा हिंदी व भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के अपने लक्ष्य में लगे हैं.