पटना: ” प्रेमचंद हम सब के पुरखे थे। संवेदना की वंशावली के आधार पर देखें तो प्रेमचंद हमारे काफी करीब महसूस होते हैं. पता नहीं कितनी पीढियों के वे काम आए,और कितनी पीढियों के काम आएंगे. उनकी रचनाओं में जीवन के जितने रंग दिखते हैं वह अन्यत्र दुर्लभ है।” ये बातें हिन्दी और मैथिली के लेखक और कला संस्कृति विभाग के उपसचिव तारानंद वियोगी ने कही। वे बिहार संगीत नाटक अकादमी द्वारा प्रेमचंद रंगशाला में आयोजित प्रेमचंद जयंती समारोह में बोल रहे थे। ‘प्रेमचंद की रंग चेतना’ पर आयोजित बातचीत में संजय उपाध्याय, तनवीर अख्तर, ध्रुव कुमार और रणधीर कुमार ने अपनी बातें रखी संचालन अकादमी की सहायक सचिव विभा सिन्हा ने किया।
इस अवसर पर बातचीत की शुरुआत वरिष्ठ लेखक ध्रुव कुमार ने करते हुए कहा ” लेखक के सामाजिक दायित्व का उन्होंने अपने लेखन में ही नहीं जीवन में भी निर्वहन किया।उन्होंने उनके जीवन के कई प्रसंग सुनाए।उन्होंने उनके तीन नाटकों संग्रम,कर्बला और प्रेम की देवी की खासतौर पर चर्चा की उन्हें सर्वकालिक प्रासंगिक बताया।”
युवा रंग निर्देशक रणधीर कुमार ने कहा ” प्रेमचंद की स्वीकार्यता पूरी दुनिया में रही। उनकी रचनाओं के दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद हुए। उनकी रंगचेतना का ही कमाल था कि इनकी कहानिया देश भर में मंचित हुई।इसका एक बडा कारण यह था कि उन्होंने अपने समय की बात की, हमारे जीवन की बात की।उनकी कहानियों में जीवन इतना सरल रुप में दिखता है कि उसका मंचन आसान हो जाता है।”
वरिष्ठ रंगकर्मी संजय उपाध्याय ” गोदान की पंक्तियों का सस्र गायन कर उनकी रंगचेतना को स्थापित कर दिया। उन्होंने कहा कि रंगकर्मियों को उनके जीवन की गाथा कलम के सिपाही का मंचन करना चाहिए। असली नाटक तो वहां है। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद ने कविता नहीं लिखी, लेकिन उनके लेखन में एक गेयता है। यदि उनके क्राफ्ट की बात करें तो वे एक संपूर्ण नाटककार के रुप में दिखते हैं। दो बैलें की कथा जैसी रचना उनकी रंगचेतना का प्रतीक है। उनकी सहजता से ड्रामा क्रिएट हो जाता है।” वरिष्ठ रंगकर्मी तनवीर अख्तर ने कहा ” उनके नाट्य जीवन की शुरुआत ही प्रेमचंद की कहानी इस्तीफा के मंचन के साथ हुई। उन्होंने कहा कि किसी भी कृति को रुपांतरित करते समय यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि वह पूर्व विधा से अधिक सशक्त हो।“
इस अवसर पर रंगकर्मी सुमन कुमार, वरिष्ठ रंगकर्मी विनीत, चित्रकार मनोज कुमार बच्च्न, बीरेंद्र सिंह, रंगकर्मी धर्मेश मेहता, रविकांत , अर्चना सोनी, भारतेन्दु सिंह, कवि प्रणय प्रियंवद, गौतम गुलाल के साथ बडी संख्या में युवा रंकर्मी उपस्थित थे।