बिहार दुनिया भर के अकादमिक जगत के लोगों  के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। दुनिया भर के विष्वविद्यालयों से बिहार का आकर शोध करने वालों की भी खासी संख्या रही है। वेंडी सिंगर उन्हीं लोगों में से हैं। वे केन्यन कॉलेजसंयुक्त राज अमेरिका में इतिहास व दक्षिण एशिया की प्रोफेसर  हैं। वे पिछले तीन दशकों से बिहार आ रही हैं। बिहार के लगभग हर चुनाव वो कवर करती रही हैं। चुनावों के अतिरिक्त उन्होंने किसान आंदोलन पर काम किया है।  क्रांतिकारी किसान आंदोलन के प्रख्यात शख्सीयत स्वामी सहजानंद सरस्वती पर लगभग  छह दशकों तक काम करने वाले वर्जीनिया यूनिवर्सिटी, अमेरिका के प्रोफेसर वाल्टर हाउजर के निर्देशन में वेंडी सिंगर ने पी.एच.डी किया गया है। प्रस्तुत है, हाल के बिहार दौरे में जागरण हिंदी के लिए अनीश अंकुर ने उनसे बातचीत की, उसके आधार पर उनके विचार-

 

मैं 1984 में भारत आई थी हिंदी सीखने । अक्टूबर 1984 में भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की हत्या  हो गयी। राजीव ने चुनाव की घोषणा की। वाल्टर हाउजर बिहार के चुनाव को कवर करने आने वाले थे । मैं उनके साथ आयी थी और मुंगेर के नेता डी.पी.यादव से मिली थी। चुनाव के अनुभवों पर मैंने आलेख भी लिखा डेमोक्रेटिक  राइट्स  भारत में चुनाव मेला की तरह होता है जहां संगीत, गाना-बजाना, खूब घूमना-फिरना होता है। प्रत्येक चुनाव भारत को ये अहसास कराता है कि देश अब औपनिवेशिक शक्तियों के अधीन नहीं हैयहां निरंकुश शासन नहीं  बल्कि एक लोकतांत्रिक देश है।

मैं दुबारा 1986 में बिहार आई। मैं दरभंगा, मधुबनी, मुंगेर गई थी किसान आंदोलन के संबंध में काम करने। मुझे यह अहसास हुआ कि किसान आंदोलन में काम करने वाले सबसे महत्वपूर्ण लोग हैं। मैंने दरभंगा महाराज के दस्तावेजों की छान-बीन की। उसमें देखा कि जमीन पर कौन काम करता है। मुझे ये अहसास लगा कि इतिहास अभिलेखों में नहीं अपितु लोगों के जीवन में हैं। सिर्फ बड़े लोग ही नहीं बल्कि छोटे-छोटे लोग भी महत्वपूर्ण हैं।

मैं गांव-गांव, घर-घर जाती थी और गांव के सबसे बूढ़े लोगों से बात करने की कोशिश करती थी। गावों में हमारी बातवीत अधिकांशतः पुरूषों से ही होती थी। महिलाएं घर के भीतर रहा करती थीं। एक दिन एक महिला से मैंने पूछा कि आप अपनी कहानी बताइए कि 1930 के दशक में किसान आंदोलन में , आजादी के आंदोलन में आप क्या करती थीं ? उस महिला ने पूछा कि आप कौन हैं ? क्या आपका विवाह हो गया है ? क्या आपके पिता जानते हैं कि आप यहां हैं ? आपको खाना बनाना आता है ? यदि नहीं आता है तो फिर आपकी शादी कैसे होगी?

मेरा बच्चा दो महीने पहले यानी सात महीने में ही हुआ। मैं अपने बच्चे को  मजबूत बनाने के लिए भारत के स्वाधीनता आंदोलन के दौरान गाए गए क्रांतिकारी गीतों को उसे सुनाया करती थी ताकि वो बड़ा होकर मजबूत बने।  स्वाधीनता आंदोलन के गानों ने मेरे बेटे को मजबूत बनाया। आज वो छब्बीस साल का है और फिल्में बनाता है।

बड़हिया टाल आंदोलन पर मेरा एम.ए थीसिस है।  मैं बड़हिया टाल आंदोलन के प्रमुख कार्यकर्ता पंचानन शर्मा से मिली। उनके साथ बड़हिया के टाल के गांवों में हाथी पर चढ़कर घूमी। इस दौरान लक्खीसराय, मुंगेर आदि जगहों पर गयी। यहीं पर मैंने बर्तन बजाने वाली बातें महिलाओं से सुनी। जो अब भी मुझे याद हैं।