नई दिल्लीः बाबा नागार्जुन की जयंती जून के महीने में दो बार मनती है. फिर इस साल तो कोरोना ने सबकुछ अस्त व्यस्त कर रखा है, इसीलिए इस साल उतना जोरशोर से उन्हें याद नहीं किया जा सका. बिहार के दरभंगा जिले के छोटे से गांव तरौनी से निकले बैद्यनाथ मिश्र ने देश-दुनिया में अपनी पहचान बाबा नागार्जुन के रूप में बनाई. घुमक्कड़ी उनका स्वभाव था तो तेवर विद्रोही. शुरुआत में उन्होंने 'यात्री' नाम से लिखा. बाद में बौद्ध धर्म की शिक्षा ली तो नाम में 'नागार्जुन' जोड़ लिया. दैनिक जागरण के पटना से जुड़े संवाददाता ने जब पद्मश्री से सम्मानित लेखिका उषा किरण खान से नागार्जुन के संस्मरणों को लेकर बात की तो उन्होंने बताया, 'बाबा का पटना से गहरा लगाव रहा. जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी तो बाबा पटना में भिखना पहाड़ी में रहते थे. उस समय वे मेरे लोकल गार्जियन की तरह थे. मेरी शादी के बाद पटना में मेरा आवास उनके लिए बेटी के घर की तरह रहा. वह पटना आते तो अकसर मेरा यहां ही रुकते. मेरे घर का मटन उनको पसंद था. वह कहते जरा तेजपत्ता वाला मटन बनाओ तो. इसके अलावा चूड़ा-मटर भी चाव से खाते. आम भी खूब पसंद था. आम का सीजन नहीं होता तो अमावट मांगते. वे नए लेखकों को प्रेरणा देते थे.'
आओ रानी हम ढोएंगे पालकी लिखकर बाबा नागार्जुन आपातकाल के दौरान जनकवि के रूप में उभरे. जेपी आंदोलन में साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु के साथ बाबा नागार्जुन का भी जुड़ाव रहा. बाबा ने जेपी आंदोलन के दौरान चौक-चौराहे और नुक्कड़ों पर कविताएं सुनाकर जनकवि के रूप में अपनी पहचान बनाई. उनको नजदीक से देखने वाले बिहार विधान परिषद के सदस्य डॉ रामबचन राय से जागरण के पटना संवाददाता ने पूछा तो उन्होंने कहा, रेणु की प्रेरणा से वे कुछ समय के लिए आंदोलन का अंग बने. इमरजेंसी लगने के पहले ही बाबा जनता सरकार का उद्घाटन करने सिवान गए, जहां उन्हें गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया था. कुछ दिनों बाद उन्हें बक्सर जेल भेजा गया. तब बाबा की उम्र काफी हो गई थी और इसका असर उनकी याददाश्त पर पड़ने लगा था. हालांकि उनके शरीर में ऊर्जा काफी थी. जेल से छूटने के बाद बाबा सीपीआई की विचारधारा से जुड़े और अपनी राह पर चलने लगे. इसके बाद वह पटना में लंबे दौर तक सक्रिय रहे. आर ब्लॉक चौराहे पर सीपीआई के आंदोलनों में वह अक्सर बैठा करते थे. डाकबंगला चौराहे का कॉफी हाउस भी बाबा का प्रिय ठिकाना रहा. मैथिली भाषा और संस्कृति के लिए समर्पित चेतना समिति की स्थापना भी बाबा के मार्गदर्शन में हुई. विद्यापति भवन में भी बाबा ने कई बार कविताएं सुनाई.