नई दिल्ली, 28 अगस्त, आज राजेंद्र यादव का जन्मदिन है. आधुनिक हिंदी जगत में शायद ही कोई ऐसा हिंदीभाषी छात्र, हिंदी प्रेमी लेखक या पाठक हो, जो इस सुपरिचित लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार व आलोचक के साथ-साथ हिंदी के सर्वाधिक लोकप्रिय पर विवादास्पद संपादकों में से एक के बारे में न जानता हो. उन्हें हिंदी के उन्नयन में स्थापित परंपराओं को तोड़ने, नए लेखकों को मौका देने और ज्वलंत मसलों पर हमेशा बेबाक टिप्पणियों के लिए याद किया जाएगा. राजेंद्र यादव ने नयी कहानी के नाम से हिंदी साहित्य में एक नयी विधा का सूत्रपात किया था. यह हिंदी साहित्य सेवा के प्रति उनका लगाव ही था कि उन्होंने 31 जुलाई, 1986 को उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द द्वारा सन् 1930 में स्थापित साहित्यिक पत्रिका 'हंस', जो कि साल 1953 में बंद हो गयी थी, के पुनर्प्रकाशन का दायित्व लिया और तमाम आर्थिक चुनौतियों के बीच भी अपनी मृत्यु के दिन तक इसे निबाहा.

राजेंद्र यादव का जन्म 28 अगस्त, 1929 को उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था. 1951 में उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान से उत्तीर्ण की. उनका विवाह सुपरिचित लेखिका मन्नू भंडारी के साथ हुआ था. जीवन के उत्तरार्ध में पति-पत्नी अलग-अलग रहने लगे थे. लेखन की शायद ही कोई ऐसी विधा हो जिसमें राजेंद्र यादव ने हाथ न आजमाया हो. उनके चर्चित प्रकाशनों में कहानी-संग्रहः 'देवताओं की मूर्तियां', 'खेल-खिलौने', 'जहां लक्ष्मी कैद है', अभिमन्यु की आत्महत्या', 'छोटे-छोटे ताजमहल', 'किनारे से किनारे तक', 'टूटना', 'चौखटे तोड़ते त्रिकोण, 'ये जो आतिश गालिब', 'यहां तकः पड़ाव-1, पड़ाव-2', 'वहां तक पहुंचने की दौड़', 'हासिल'; उपन्यासः 'सारा आकाश', 'उखड़े हुए लोग' 'कुलटा', 'शह और मात', 'अनदेखे अनजान पुल', मन्नू भंडारी के साथ 'एक इंच मुस्कान', 'मन्त्रविद्धा', 'एक था शैलेन्द्र' के अलावा कविता-संग्रह 'आवाज तेरी है' शामिल है. उन्होंने चैखव के तीन नाटक 'सीगल', 'तीन बहनें', 'चेरी का बगीचा' के नाम से नाटक लिखे. उनकी अनुवाद, समीक्षा-निबंध और संपादित पुसकों की गिनती भी काफी है.

उनके द्वारा अनूदित चर्चित किताबों में चैखव की 'टक्कर', लर्मन्तोव की 'हमारे युग का एक नायक',  तुर्गनेव की 'प्रथम-प्रेम' और 'वसन्त-प्लावन', स्टाइनबैक की 'एक मछुआ: एक मोती और कामू की 'अजनबी' शामिल है. चर्चित समीक्षा-निबंध और साक्षात्कार में 'कहानीः स्वरूप और संवेदना', 'प्रेमचन्द की विरासत', 'अठारह उपन्यास', 'औरों के बहाने', 'कांटे की बात' बारह खंड, ' कहानी अनुभव और अभिव्यक्ति', 'उपन्यासः स्वरूप और संवेदना', 'आदमी की निगाह में औरत', 'वे देवता नहीं हैं', 'मुड़-मुड़के देखता हूं', 'अब वे वहां नहीं रहते', 'मेरे साक्षात्कार', 'काश, मैं राष्ट्रद्रोही होता' और 'जवाब दो विक्रमादित्य' शामिल है. उन्होंने 'हंस' मासिक के अलावा 'एक दुनिया समानान्तर', 'कथा-दशकः हिंदी कहानियां', 'आत्मतर्पण', 'अभी दिल्ली दूर है', 'काली सुर्खियां', 'कथा यात्रा', 'अतीत होती सदी और त्रासदी का भविष्य', 'औरत: उत्तरकथा', 'देहरी भई बिदेस', 'कथा जगत की बाग़ी मुस्लिम औरतें', 'हंस के शुरुआती चार साल' और 'वह सुबह कभी तो आयेगी' का संपादन किया था. उन्हें कई पुरस्कार मिले, जिनमें हिंदी अकादमी, दिल्ली  का सर्वोच्च शलाका सम्मान शामिल है. अक्टूबर की 28 तारीख को साल 2013 में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा.

 जागरण हिंदी की ओर से राजेंद्र यादव की याद को नमन!