नई दिल्लीः कोरोना काल में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के चलते देश के साहित्यकार विभिन्न चैनलों और व्हाट्स समूहों के माध्यम से गोष्ठी तथा कवि सम्मेलन आयोजित कर सामाजिक उत्प्रेरणा का काम कर रहे हैं. हाल ही में 'माटी की सुगन्ध' समूह द्वारा एक ऑन लाइन कवि सम्मेलन सम्पन्न हुआ. जिसमें दिल्ली, मुरादाबाद, मेरठ, पानीपत, अलीगढ़, शामली, करनाल और राजस्थान के कवियों ने मानवीय संवेदनाओं पर केन्द्रित एक से बढ़कर एक रचनाएं सुनाई. अध्यक्षता गीतकार डॉ जयसिंह आर्य ने की. ग़ज़लकार कृष्ण कुमार नाज मुख्य अतिथि और डॉ विजय प्रेमी व अनूपिन्दरसिंह अनूप विशिष्ट अतिथि रहे. संचालन डॉ सीमा विजयवर्गीय ने किया. कवि सम्मेलन की शुरुआत अनुराधा सिंह अनु द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना से हुआ.
डॉ जयसिंह आर्य ने अपनी इस रचना से मानवीय संवेदना को झकझोरा, 'कुछ कमी करता नहीं व्यक्ति अत्याचार में, बन गया है कंस का अवतार कैसे आदमी ?' कृष्ण कुमार नाज़ ने पढ़ा, 'हर निशां मिट जायेगा, खो जाएगी मंजिल की राह, साथ जब मिल जाएगा आंधी का रेगिस्तान को.' डॉ विजय प्रेमी ने राष्ट्रीय एकता पर भी जोर दिया, 'हिन्दू के लिए ना मुसलमान के लिए, जीना है तो जियो इन्सान के लिए.' अनूपिन्दर सिंह अनूप ने अपने काव्य पाठ में कहा, 'सीधा सादा सच्चा बनना, बहुत कठिन है अच्छा बनना. मुश्किल है करना मजदूरी, आसां चोर उचक्का बनना. रिश्ते अगर निभाने हों तो, कानों का मत कच्चा बनना.' इनके अतिरिक्त अनुराधा सिंह अनु, डॉ सीमा विजयवर्गीय, तेजवीर सिंह त्यागी, प्रीतम सिंह प्रीतम, नरेश कुमार शाम, डॉ विनोद शंकर पाण्डेय, रामनिवास भारद्वाज, श्रीकृष्ण कुमार निर्मल,आर जे योगी और भारत भूषण वर्मा ने भी काव्यपाठ किया.