वाराणसीः बनारस और नामवर, अपनी जन्मभूमि से साहित्य के इस पुरोधा के नाते पर जितना भी कहा, लिखा जाए कम होगा. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय में नामवर सिंह की स्मृति में जब श्रद्धांजलि सभा का आयोजन हुआ, तो नामवर सिंह से जुड़े प्रसंगों और यादों को साझा करने का ज्वार सा आ गए. लोग गमगीन थे यह समझते हुए भी कि देह की अमरता संभव नहीं. बनारस नामवर सिंह की प्रसन्न सक्रियताओं का हमेशा ही केन्द्र हुआ करता था. वह यहां आते रहे और अपनी तीखी मेधा और मजबूत काया के साथ संगोष्ठियों में जान भरते रहे. उन्होंने संवाद की जड़ता को दुस्साहसिक ढ़ंग से भी तोड़ा. वे कभी नाराज़गियों की परवाह में नहीं दिखे. प्रो अवधेश प्रधान ने कहा कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने जिस ज्ञान परंपरा का निर्माण किया उसमें नामवर सिंह अन्यतम थे. उनके वैदुष्य में आचार्य केशव प्रसाद मिश्र, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की अन्तर्धारा दिखती है, बहुत स्वाभिमानी व्यक्तित्व थे वे, स्थितियों की बेहद विपरीतता और कठोरता के आगे कभी नहीं झुके, अपने संघर्ष के कठिन दिनों को उन्होंने स्वाध्याय से भर दिया, एक अनूठा विद्याव्यसनी पुस्तक प्रेमी व्यक्तित्व था उनका. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को उन्होंने भारतीय ज्ञानपरंपरा के सजीव में रच दिया. वह उनके विज़न और क्षमता का साकार स्वरुप साबित हुआ. उन्होंने कहा कि बनारस को उन पर हमेशा गर्व रहेगा.
महिला महाविद्यालय की पूर्व प्राचार्या प्रो सुशीला सिंह ने आत्मीयता पूर्वक महाविद्यालय के सेमिनारों में नामवर सिंह की अनगिनत शिरकत को याद किया और कहा कि वे एक सक्षम और अडिग व्यक्तित्व थे. उस्मानिया यूनिवर्सिटी हैदराबाद के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो मणिक्यांबा मणि ने बताया कि हैदराबाद में नामवर सिंह के वैदुष्य का ऐसा असर था कि जब वहां के किसी भी अनुशासन के शिक्षक या छात्र यह सुनते कि नामवर सिंह का व्याख्यान है तो उनकी कक्षाओं में अघोषित छुट्टी का माहौल हो जाता और सब उन्हें सुनने पहुंचे हुए होते. प्रो चंद्रकला त्रिपाठी ने कहा कि हम लोग उन भाग्यशाली लोगों में खुद को महसूस कर रहे हैं जिन्होंने नामवर जी को खूब सुना है, देखा है और बातें की हैं. हम लोगों के लिए उनकी किताबों को पढ़ने का अनुभव यह है कि जैसे वे अक्षरों में बोल उठे हों. हम वहां उनकी मुद्राओं को देखते हैं. उनकी चुटकियां और परिहास सब हमारे लिए प्रत्यक्ष अनुभव सरीखे हैं. तकलीफ होती है कि अब हम उन्हें देख सुन नहीं सकेंगे मगर उनके लिखे में उन्हें पाते रहेंगे. प्रो वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी ने कहा कि वे महान मेधा के व्यक्ति थे. उन्होंने हिंदी आलोचना को सक्रिय वैश्विक परिप्रेक्ष्य दिया.बनारस में बसते थे वे और यह बनारस उनके साथ रहा हमेशा. प्रो लयलीना भट्ट ने भी यादें साझा कीं. स्मृति सभा में प्रो रिफत जमाल, डॉ उत्तम गिरी, डॉ निशात अफ़रोज़, प्रो मीनाक्षी सिंह, प्रो कनिका कुंडू, डॉ आभा मिश्रा पाठक, प्रो ज्योत्सना श्रीवास्तव, प्रो के एन तिवारी, डॉ नीलेश कुमार के अलावा बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं, अध्यापक वृंद और शोध छात्र उपस्थित थे. सभा ने अंत में दो मिनट का मौन रखा गया और नामवर सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की गई.