श्रीगंगानगर: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत ने सृजन सेवा संस्थान और नोजगे पब्लिक स्कूल के सहयोग राजस्थान के श्रीगंगानगर में 'बाल साहित्य और पुस्तकें'विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें आरंभिक वक्तव्य देते हुए डॉ गोपीराम शर्मा ने कहा कि समाज का प्रतिनिधित्व पुस्तकें करती हैं. पुस्तकों ने बच्चों के सर्वागींण विकास में मदद की है. बच्चों की कल्पना शक्ति में विकास किया है और नए आयाम दिए हैं, जिनसे बच्चों की दुनिया को एक मंच मिला है, जिसमें मौलिकता निश्छल भाव से विद्यमान है. हमें अपने बच्चों को वह माहौल देना होगा कि उनकी अभिरुचि पढ़ने की और विकसित हो. इसलिए हमें घरों में पढ़ने के लिए माहौल बनाना होगा.हमें खुद ही पुस्तकों से जुड़ना होगा, इसका सीधा प्रभाव बच्चों की चेतना पर पड़ेगा.


राजकीय कन्या महाविद्यालय की अस्सिटेंट प्रोफेसर बबिता काजल ने कहा कि आज जो सबसे बड़ा संकट है वह बच्चों पर है. उनकी कल्पना शीलता पर सीधा असर पड़ता है उसके माहौल का. वह मोबाइल और अन्य गैजेट्स में अपने को पाता है. वह किताब को नहीं उठाता. उसका आकर्षण पुस्तकों के प्रति नहीं रहता. उसको एक माहौल देने की आवश्यकता है. पुस्तक एक सर्वांगीण विकास के लिए पुस्तक माहौल बनाती है. आज बच्चों को गैजेट्स से दूर रखने की आवश्यकता है. किसी भी उपकरण का नशा नहीं होना चाहिए. हर चीज का वक्त तय होना चाहिए. इस पूरे माध्यम में अभिभावकों की भी एक भूमिका तय करनी पड़ेगी.
बाल साहित्य के विद्वान डॉ गोविंद शर्मा का कहना था कि यह बहुत ज्यादा पुरानी विधा नहीं है. इसका विभाजन करने का श्रेय पुस्तक को जाता है. आज बाल साहित्य की पुस्तकें दिन प्रतिदिन खूब छप रही हैं. कुछ पत्रिकाएं पहले निकला करती थीं, लेकिन अब वे मृतप्राय हो चुकी हैं. आज बाल साहित्य यदि जीवित है तो वह पुस्तकों में है. कुछ लोक कथाओं में भी बाल साहित्य की बात दिखाई देती है. लोक कथाओं और नैतिक कथाओं के माध्यम से यह समझने की कोशिश की गई है कि किस तरह उनका मनोबल बढ़ाया जाए. आज कुछ समाचार पत्रों में बाल साहित्य को स्थान दिया जाने लगा है. सवाल यह है कि बच्चों को मोबाइल किसने दिया है. पैरेंट्स ही जिम्मेवार हैं. 
साहित्य अकादमी से सम्मानित डॉ बुलाकी राम शर्मा ने कहा कि आज लेखकों को चाहिए कि वे अपने लेखन की समीक्षाएं बच्चों से करवाने का मौका दें. अगर यह स्वंत्रत इकाई आपकी रचना को पसन्द करती है तो लेखक की रचना को अवश्य ही प्रमाण पत्र मिल जाएगा कि जिस वर्ग के लिए लिखा जा रहा है वह आपके लेखन का एक चश्मदीद गवाह है. आज ऐसे सेवकों की जरूरत है, जो आपके लेखन पर बड़ी पैनी निगाह बनाये रखें. लेखक को बच्चों की मनोवृत्ति को समझ कर लिखना पड़ेगा. यह तभी होगा कि हम अपने वक्त के भविष्य को कितना मान व सम्मान देते हैं.
इस अवसर पर डॉ प्रेम जनमेजय ने कहा, मैं बाल साहित्य सीखने वाला एक जिज्ञासु हूं.  मैं कालेज में 40 वर्ष पढ़ाने वाला एक विद्यार्थी ही हूँ. लगातार सीखने की ललक मुझे प्रेरित करती है. बाल साहित्य लिखने वाले के मन में मासूमियत और जिज्ञासा आती है, इसके लिए जरूरी है कि अपने अंदर के बच्चे को जिंदा रखा जाये, जिसके लिए बाल साहित्य का पढ़ा जाना आवश्यक है. मैं धर्मयुग में लगातार लिखा और बच्चों के लिए लिखता चला गया. मैं आने वाली पीढ़ी और पौध को शुभकामनाएं देना चाहूंगा कि वह लगातार पढ़े और अपने भीतर के बच्चे को जीवित रखें. बच्चों को तकनीक से विमुख न कीजिये,उन्हें पढ़ने का विकल्प भी दीजिये. बच्चों के जीवन में संतुलन बिठाना जरूरी है,उसका अतिरेक नहीं होना चाहिए.
मुख्य अतिथि डॉ पी एस सूदन ने कहा कि हम जिस किसी व्यक्ति से मिलते हैं, उसका असर हम पर पड़ता है. जिनको यह लत लगी वह दूर तक निकल गए. पढ़ने की आदत मुझे भी है, जो एक मित्र की भूमिका निभाने में सक्षम है. किताबों का चयन बेहद जरूरी है. गांधी महात्मा नहीं होते यदि उन्होंने टालस्टाय न पढ़ा होता. एक व्यक्ति एक पुस्तक में अपना जीवन का सार उसमें दे देता है. जीवन का निचोड़ उसमें देता है. पुस्तकें हमारा जीवन सवांर भी सकती हैं और हमें कहीं और दिशा में ले जाने को प्रेरित भी करती हैं.
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ मंगत बादल ने कहा, बाल साहित्य की रेल को हम सब ने आज देखा. दो दिन की संगोष्ठी में निश्चित ही सकारात्मक परिणाम आए हैं. दो दिन में न्यास ने लेखकों, बुद्धिजीवियों के साथ छात्र और छात्राओं को जोड़ने का जो साहसिक कदम उठाया वह अपने आप में सराहनीय प्रयास है. इस के लिए न्यास के प्रबंधक व सक्षम अधिकारी को बधाई व शुभकामनाएं. इस अवसर पर लोककथाओं के माध्यम से डॉ मंगत बादल ने बात रखीं औऱ बच्चों को कथा के माध्यम से जोड़ने का प्रयास किया. इस संगोष्ठी में स्कूली विद्यार्थियों के अलावा बुद्धिजीवियों ने भी शिरकत की।छात्र-छात्राओं की रुचि बराबर दोनों दिन के कार्यक्रम में बनी रहीं.न्यास के हिंदी के सहायक संपादक डॉ ललित किशोर मंडोरा ने बच्चों को अपनी शुभकामनाएं दी और कहा कि भविष्य को गढ़ने में पुस्तकें सहायक है. आज ये प्रण लो कि रोजाना हम पुस्तकें पढ़ेंगे. उपस्थित छात्र छात्राओं ने यह प्रण लिया और कहा कि आगे से अपने दैनिक कार्यक्रम में पढ़ने के लिए भी एक सत्र को जोड़ेंगे, जिसमें स्कूली पुस्तकों के अलावा भी जो पुस्तकें होगी, उनका अध्ययन अवश्य करेंगे.  संचालन डॉ अरुण शहरिया ने किया. इस मौके पर 'ट्रैफिक नियम के मायने' भी खेला गया, जिसमें में दिखाया गया था कि गाड़ी चलाते समय ट्रैफिक के नियमों का पालन करना चाहिए, ईयर फोन का उपयोग नहीं करना चाहिए.