— दैनिक जागरण मुक्तांगन की ओर से कार्यक्रम का हुआ आयोजन -आलोचकों पर सकारात्मक भूमिका निभाने का दबाव बनाते दिखे रचनाकार

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली, दैनिक जागरण की मुहिम ‘हिंदी हैं हम’ के तहत ‘दैनिक जागरण मुक्तांगन’ के मासिक कार्यक्रम के मौके एक मंच पर रचनाकार और आलोचक मंच पर आमने सामने थे । दोनों के बीच शिकवे शिकायत तो आम है लेकिन इस बार आयोजन में रचनाकार और आलोचकों में जमकर नोंक झोंक हुई। रचनाकारों का कहना है कि उनकी कठिन परिश्रम के बाद सुनी सुनाई बातों के सहारे उनकी रचना पर एक दिन में पानी फेर दिया जाता है, वहीं आलोचकों का दावा था कि रचना समाज की होती है, ऐसे में आलोचक अपने विवेक को गिरवी नहीं रख सकते। हालांकि, दोनों ने कुछ अपवाद स्वरुप रचनाओं को छोड़कर स्वीकार किया कि आलोचकों को ध्यान में रखकर रचना लिखना संभव नहीं है तो बगैर आलोचक के रचना भी पूरी नहीं होती। विषय था हिंदी लेखन के बदलते स्वरूप में आलोचना की भूमिका। आलोचक दिनेश कुमार ने ‘ताकतवर’ शब्द को परिभाषित किए बगैर कहा कि जो ज्यादा ताकतवर है वह साहित्य को प्रभावित करता है। इन्होंने कहा कि विषय से साहित्य कमजोर नहीं होता, इसमें रचना की दृष्टि महत्वपूर्ण होती है। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि जिस तरह से साहित्य में बाजार का दखल बढ़ रहा है उससे ऐसा नहीं लग रहा है कि साहित्य साहित्य रह जाएगा। रचनाकार गीताश्री ने कहा कि नकारात्मक आलोचना से ही साहित्य जगत में चर्चित हुई। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि आलोचकों को स्त्रियों के नाम पर खोले गए बाजार नहीं दिखते, जब लिखा जा रहा है तो बाजार दिखने लगा। रचनाकार आशा प्रभात ने कहा कि अगर आलोचकों का दृष्टिकोण स्वच्छ हो तो रचनाकार और आलोचक दोनों के लिए फायदेमंद होता है। लेकिन यह भी कहा कि जिसके पास अध्ययन नहीं है, दृष्टि नहीं है। ऐसी रचनाकारों की पीढ़ी भी आ गई। ऐसे में पाठक के सामने क्या पढ़े या न पढ़े यह समस्या पैदा हो गई है। आलोचक ज्योतिष ज्योति ने कहा कि आलोचना एक मुर्खतापूर्ण परंपरा है जो चलती आ रही है। उन्होंने यह भी कहा कि दुर्भाग्य से रचनाकार मजे लेने के लिए लिखते हैं आलोचक अपने लिए लिखते हैं। दूसरे सत्र में खबरों की कहानियां और कहानियों की खबरें विषय पर चर्चा के लिए पत्रकार व लेखक प्रियदर्शन और जयंती रंगनाथन एक साथ मंच पर रहे। अंत में वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने भी अपने विचार रखे। जयंती रंगनाथन ने कहा कि गोधरा कांड हो या आरुषि हत्याकांड इनपर अभी तक बड़ी रचना नहीं आई। पत्रकार व रचनाकर प्रियदर्शन ने भी कहा कि जल्दीबाजी में खबरें परोसने की वजह से बड़ी रचना देने में हम असमर्थ हो रहे हैं। घटनाओं की स्मृति शेष रहती है तभी कोई महान रचना आ जाती है।  वरिष्ठ पत्रकार राहुलदेव ने कहा घट रही महत्वपूर्ण घटनाओं पर लेखक लिखने से भी बच रहे हैं यह भी एक विडंबना है। इस मौके पर ट्रस्टी राकेश वैद, ऊषा वैद, अराधना प्रधान सहित काफी संख्या में लोग उपस्थित थे।