नई दिल्ली: साहित्य अकादमी ने फीजी के लेखक प्रो सुब्रमनी के साथ 'साहित्य मंच' कार्यक्रम आयोजित किया. इस कार्यक्रम में लेखक ने हाल ही में प्रकाशित अपने उपन्यास 'फीजी माँ' का एक अंश प्रस्तुत किया. उपन्यास अंश के पाठ से पहले उन्होंने विश्व की सभी लुप्त हो रही भाषाओं के प्रति चिंता जाहिर करते हुए कहा कि फीजी की भी दो भाषाएँ लुप्त होने के कगार पर हैं, जिनमें एक है – 'ई-तौकेय' तथा दूसरी है- 'फीजी हिंदी'. उन्होंने इस बात पर दुःख प्रकट किया कि नई पीढ़ी अपनी मातृ भाषाओं से दूर होकर एक अंधकार की ओर बढ़ रही है. ज्ञात हो कि फीजी एक समय लघु भारत के रूप में जाना जाता था और वहां हिंदी के कई समाचार पत्र और पत्रिकाएं प्रकाशित होती थीं. कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने प्रो सुब्रमनी का स्वागत अंगवस्त्रम् एवं पुस्तकें भेंट करके किया. इस कार्यक्रम में फीजी साहित्य से जुडे़ महत्त्वपूर्ण भारतीय लेखक विमलेशकांति वर्मा, नारायण कुमार, सुरेश ऋतुपर्ण एवं राकेश पांडेय आदि के साथ उनका संवाद सत्र हुआ, जिसमें फीजी से जुड़ी कई जानकारियों को साझा किया.
प्रोफेसर सुब्रमनी ने बताया कि अब वहां फीजी हिंदी की हालत बहुत खराब है और हमें इसे बचाने के लिए एक आंदोलन की जरूरत है. 'फीजी माँ' उपन्यास दो महिलाओं की कहानी है और इसमें भारतीय लेखकों जैसे- रवींद्र नाथ टैगोर, राजा राव आदि के प्रभाव देखे जा सकते हैं.  डॉ सुब्रमनी एक द्विभाषी लेखक हैं, जो अंग्रेज़ी और फीजी हिंदी में लेखन करते हैं. आप भाषा और साहित्य विभाग, फीजी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं. आपने कुलपति के रूप में अपना कार्यकाल भी पूरा किया है. आपने साउथ पैस्फिक यूनिवर्सिटी में कई वर्षों तक प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष, प्रति कुलपति के रूप में अपना योगदान दिया. वहां उन्होंने पैस्फिक राइटिंग फोरम तैयार करने में महत्त्वपूर्ण कार्य किया. प्रोफेसर सुब्रमनी जापान, भारत, यूनाइटेड स्टेट, वेस्टइंडीज और मॉरिशस आदि देशों में एक लेखक और शिक्षाविद् के रूप में आमंत्रित किए जाते रहे हैं. प्रोफेसर सुब्रमनी हिंदी-अंग्रेज़ी सहित फीजी में लेखकीय योगदान के लिए अनेक पुरस्कार और सम्मान से नवाजे जा चुके हैं. कार्यक्रम में उनके परिवार के सदस्य भी उपस्थित थे. संचालन साहित्य अकादमी के संपादक अनुपम तिवारी ने किया.