नई दिल्लीः टेलीविजन पत्रकार और अब इंदिरा गांधी राष्ताट्रीय कला केंद्र में कार्यरत और फिल्म-कला समीक्षक के रूप में खासी पहचान अर्जित करने वाले इकबाल रिजवी की इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सहयोग से 'पोस्टर बोलते हैं' नाम से पहली किताब आ रही है, जिसका लोकार्पण 14 सितंबर को राजधानी दिल्ली में चर्चित फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल करेंगे. 'सिनेमा और हिंदी साहित्य' पर काफी काम कर चुके इकबाल की इस पुस्तक में कुल 13 अध्याय हैं, जिनमें फिल्मी पोस्टरों का समूचा अतीत, उसकी आज की परिणिति तक सिमटा हुआ है. रिजवी के शब्दों में फिल्मी पोस्टरों को कला का हिस्सा, संवाद का माध्यम और फिल्मों के सचित्र इतिहास के रूप में देखा जाना चाहिए था, पर अफसोस की इन्हें आज तक कला का दर्जा हासिल नहीं हुआ.उन्होंने अपनी किताब में पोस्टर के जन्म से लेकर, उसके महत्त्व, उसके निर्माण की बारीकियां, उनमें समय-समय पर हुए बदलाव, पोस्टर कलाकारों के महत्त्व और समय-समय पर आए खतरों के जिक्र के अलावा, उनसे जुड़े किस्सों का भी जिक्र किया है. यह एक कठिन काम था, जिसमें तकरीबन तीन साल लगे. कई लोग गुजर चुके थे, तो कहीं पोस्टर का समूचा परिदृश्य ही ओझल था. हिंदी में अपनी तरह का यह पहला काम है.

 

किताब की प्रस्तावना लिखते हुए कला केंद्र से जुड़े इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी लिखते हैं कि कथा, कला और काल इन तीन शब्दों को मिलाकर एक नए शब्द की रचना की जाए तो निश्चय ही वह पोस्टर होगा, जो किसी भी घटना का कालजयी चित्रण प्रस्तुत करता है. एक कागज के टुकड़े पर एक पूरी की पूरी फिल्म की सारगर्भित कहानी दिखा देना एक कमाल से कम नहीं है, यही कमाल करता रहा है हमारा पोस्टर.. उनके मुताबिक यह पुस्तक सिनेमा प्रेमियों और सिनेमा पर शोध कर रहे विद्यार्थियों के लिए उपयोगी होगी.  इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और नेशनल फिल्म अर्काइव दिल्ली के  सहयोग से इस आयोजन के दौरान ही सफेद-श्याम दौर की अबोलती फिल्मों का उत्सव भी 'मूक-चित्र' के नाम से होगा. जिसमें दादा साहेब फाल्के द्वारा निर्मित 'राजा हरिश्चंद्र', 'श्री कृष्ण जन्म और कालिया मर्दन' जैसी फिल्म दिखाई जाएगी