मुंबईः मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी नहीं रहे. भारतीय सिनेमा के इस दिग्गज संगीतकार को खय्याम के नाम से वह शोहरत मिली, जिसकी दरकार हर किसी को होती है. खय्याम ने 92 वर्ष की एक शानदार, संगीतमय जिंदगी जी, हालांकि लंबे वक्त से वह बीमार चल रहे थे. उनके निधन से फिल्म जगत में शोक की लहर दौड़ गई. पद्म भूषण से सम्मानित खय्याम के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा कि 'सुप्रसिद्ध संगीतकार खय्याम साहब के निधन से अत्यंत दुख हुआ है. उन्होंने अपनी यादगार धुनों से अनगिनत गीतों को अमर बना दिया. उनके अप्रतिम योगदान के लिए फिल्म और कला जगत हमेशा उनका ऋणी रहेगा. दुख की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके चाहने वालों के साथ हैं.' याद रहे कि एक शानदार समाजसेवी के रूप में भी खय्याम ने अपने 90वें जन्मदिन पर अपने जीवन भर की कमाई को एक ट्रस्ट के नाम कर दी. तब तकरीबन 12 करोड़ रुपए की रकम ट्रस्ट को दी गई, और इस पैसे से जरूरतमंद कलाकारों की मदद का ऐलान हुआ. गजल गायक तलत अजीज और उनकी पत्नी बीना इसके मुख्य ट्रस्टी बने थे.
'कभी कभी' और 'उमराव जान' जैसी फिल्मों के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड पा चुके पंजाब के नवांशहर में जन्मे ख़य्याम ने अपने करियर की शुरुआत 1947 में की थी. ख़य्याम ने पहली बार फिल्म 'हीर रांझा' में संगीत दिया, लेकिन मोहम्मद रफ़ी के गीत 'अकेले में वह घबराते तो होंगे' से उन्हें पहचान मिली. इसके बाद तो फिल्म 'शोला और शबनम' ने उन्हें संगीतकार के रूप में स्थापित कर दिया. ख़य्याम की पत्नी जगजीत कौर भी अच्छी गायिका हैं और उन्होंने ख़य्याम के साथ 'बाज़ार', 'शगुन' और 'उमराव जान' में काम किया था. 'वो सुबह कभी तो आएगी', 'जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें', 'बुझा दिए हैं खुद अपने हाथों, 'ठहरिए होश में आ लूं', 'तुम अपना रंजो गम अपनी परेशानी मुझे दे दो', 'शामे गम की कसम', 'बहारों मेरा जीवन भी संवारो' जैसे अनेकों गीतों को अपने संगीत से उन्होंने अमर बना दिया.