नई दिल्लीः जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के संस्थापक सदस्यों में से एक प्रो. मुजीब रिज़वी ने जायसी और उनकी लेखनी को केंद्र बना कर साल 1979 में अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से जिस शोधग्रंथ पर डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की थी, पुस्तक की शक्ल में राजकमल प्रकाशन ने उसे 'सब लिखनी कै लिखु संसारा: पद्मावत और जायसी की दुनिया' नाम से छापा है. इसी पुस्तक का लोकार्पण नई दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में प्रोफेसर असगर वजाहत, पुरुषोत्तम अग्रवाल, शाहिद मेहदी, अशोक चक्रधर, मुकुल केशवन, शाहिद अमीन, रविकांत, रवीश कुमार, अनुषा रिज़वी, सुमन केशरी, वंदना राग सहित कई साहित्यकारों, इतिहासकारों, विशेषज्ञों की मौजूदगी में हुआ. पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा, "हर किताब का अपना एक समय होता है. मुजीब रिज़वी की किताब आज इस दौर में प्रकाशित हुई है जब अवधेश और भारतदेश को एक दूसरे के खिलाफ़ खड़ा किया जा रहा है. हिन्दी साहित्य और आलोचना दोनों को समृद्ध करने वाली यह किताब आज बहुत प्रासंगिक है."
सईद शाहिद मेहदी का कहना था, "प्रो. मुजीब रिज़वी एक ट्रांसपेरेंट शख्स थे. अगर किसी आदमी को आप सेक्युलर कह सकते हैं जो अपने ख़यालात में, अपनी आदतों मे सेक्युलर हो तो वो मुजीब थे. उनकी शख्सियत कभी नहीं बदली." असग़र वजाहत ने कहा कि उनकी सूफ़ी साहित्य को फ़ारसी के रास्ते समझने की कोशिश काबीले तारीफ़ है. उन्होंने कहा, "मुजीब रिज़वी सिर्फ़ पद्मावत पर ही नहीं बल्कि तुलसी दास पर भी काम किया है. उनकी सबसे बड़ी बात यह थी कि उन्होंने रामचरित्र मानस को फ़ारसी सूत्रों से समझने की कोशिश की थी." कार्यक्रम का एक आकर्षण दास्तानगो महमूद फारूख़ी एवं दारेन शाहिदी द्वारा पद्मावत का पाठ रहा. इन दोनों ने अपनी जुगलबंदी से पद्मावत की कहानी को जीवंत कर दिया. कार्यक्रम में शामिल सभी वक्ताओं का मत था कि यह शोध ग्रंथ न सिर्फ़ मलिक मुहम्मद जायसी की तमाम रचनाओं का एक मौलिक विश्लेषण पेश करता है अपितु सूफ़ी साहित्य की बहुत सी मान्यताओं और अभिव्यक्तियों से जायसी के माध्यम से पहली बार परिचित कराता है.