पटनाः प्रगतिशील लेखक संघ की पटना इकाई ने प्रेमचंद के साहित्य पर चर्चा के बहाने अदालतगंज स्थित जनशक्ति भवन के सभागार में एक बड़ा आयोजन किया, जिसमें प्रेमचंद पर चर्चा-गोष्ठी, कविता-पाठ और सांगठनिक बैठक हुई. कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ आलोचक डा खगेंद्र ठाकुर ने की. 'इस अँधेरे समय में प्रेमचंद' विषयक विचार-गोष्ठी का संचालन कवि राजकिशोर राजन ने किया. वहीं कविता-पाठ का संचालन कवयित्री डा रानी श्रीवास्तव ने किया. वरिष्ठ आलोचक डा खगेंद्र ठाकुर ने कहा, 'प्रेमचंद का साहित्य जीने की प्रेरणा देता है. परिवर्तन का आह्वान करता है. बनारसीदास चतुर्वेदी ने एक इंटरव्यू में प्रेमचंद से पूछा कि अपनी सबसे महत्त्वपूर्ण कृति का नाम बताएं, तो उत्तर में प्रेमचंद ने किसी रचना का नाम न बताकर कहा कि 'धन से दुश्मनी'. कवि राजकिशोर राजन ने कहा कि प्रेमचंद को पढ़कर हम आज की परिस्थितियों का आकलन कर सकते हैं. हम देख सकते हैं कि सर्वहारा वर्ग के पास खोने और खाने के लिए कुछ भी नहीं है और देश का पूंजीपति वर्ग ख़ूब खा रहा है और अपने घर के कुत्तों को भी ख़ूब खिला रहा है.
डा. रानी श्रीवास्तव ने कहा कि आज प्रेमचंद के समय से अधिक अंधेरा है. स्त्री और पुरुष की कोमल भावनाएं भी इस अंधेरे में रोज़ अपना दम तोड़ रही हैं, इस पर गंभीरता से समझने की आवश्यकता है. प्रभात सरसिज, सत्येन्द्र कुमार, रंगकर्मी जयप्रकाश के अलावा प्रेमचंद के जीवन और साहित्य पर अमरनाथ सिंह, वेदप्रकाश तिवारी, मनोज कुमार आदि वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे. कार्यक्रम का दूसरा सत्र कवि-गोष्ठी का था. आरंभ कवयित्री लता प्रासर की कविताओं से हुआ. इस गोष्ठी में लता प्रासर, श्वेता शेखर, सिद्धेश्वर, वेदप्रकाश तिवारी, बासबी झा, मधुरेश नारायण, राजकिशोर राजन, शहंशाह आलम, डा रानी श्रीवास्तव, प्रभात सरसिज और डा. खगेंद्र ठाकुर ने भी अपनी चुनी हुई कविताओं का पाठ किया. अंत में साहित्य के दिग्गजों, लेखकों नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, गिरीश कर्नाड, विष्णु खरे, कृष्णा सोबती, रमणिका गुप्ता, अर्थशास्त्री गिरीश मिश्र, 'जनशक्ति' के सम्पादक उपेन्द्रनाथ मिश्र, दूधनाथ सिंह, रामेश्वर प्रशांत, कामरेड गया सिंह, कामरेड जलालुद्दीन अंसारी, शीला दीक्षित, प्रो. विजेंद्र नारायण सिंह, कवि ग़ुलाम खंडेलवाल, गोविंद पनसारे, नरेंद्र दाभोलकर, गौरी लंकेश, डा. रामविनोद सिंह, डा. दीनानाथ सिंह, कथाकार मधुकर सिंह, गोपाल शरण सिंह के अतिरिक्त पुलवामा हमले में शहीद जवान और सोनभद्र के नरसंहार में मारे गए आदिवासियों को सादर नमन किया गया. धन्यवाद-ज्ञापन शहंशाह आलम ने किया.