नई दिल्लीः साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित प्रवासी मंच कार्यक्रम में नार्वे के ओस्लो से पधारे लेखक सुरेश चंद्र शुक्ल ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं. कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादमी के सचिव डा के श्रीनिवासराव ने अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तकें भेंट कर उनका स्वागत किया. अपनी बात की शुरुआत करते हुए सुरेश चंद्र शुक्ल, जो लेखन जगत में शरद आलोक के नाम से चर्चित हैं, ने योरोप, विशेषकर नार्वे में हिंदी की स्थिति के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने वहां से निकलने वाली हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का विशेष तौर पर उल्लेख किया. इसके बाद उन्होंने अपनी कहानी 'वापसी' का पाठ किया जो कि उनके कहानी-संग्रह 'सरहदों के पार' में संकलित है. इस कहानी में एक प्रवासी भारतीय कैसे अपने देश लौटते समय उत्साहित होता है और उनके लिए किस तरह के उपहार आदि ले जाता है, का वर्णन किया गया था.

इस कार्यक्रम में सुरेश चंद्र शुक्ल ने अपनी कविताएं प्रस्तुत कीं. साहित्य रचनाओं की प्रस्तुति के पश्चात श्रोताओं ने उनसे नार्वे में हिंदी तथा वहां के समाज में भारतीय लोगों की स्थिति के बारे में कई प्रश्न पूछें. एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि नार्वे में लगभग 24 हजार भारतीय हैं और वहां हिंदी के अलावा पंजाबी, उर्दू एवं तमिळ भाषाएं भी बोली जाती हैं. वहां के मिडिल स्कूल एवं विश्वविद्यालय स्तर पर भी इन भाषाओं को पढ़ाया जाता है. कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादमी के संपादक हिंदी अनुपम तिवारी ने किया. समारोह में हिंदी में रुचि रखने वाले कई छात्र व साहित्यप्रेमी मौजूद थे.